- सेना में पोस्टिंग वाले मामले में दखल से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
- कहा- ‘किसी न किसी को अंडमान, लद्दाख तो जाना पडे़गा’
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सेना व सशस्त्र बलों में पोस्टिंग से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने दखल देने से इंकार करते हुए कहा कि माना की लद्दाख, अंडमान व निकोबार व पूर्वोत्तर राज्य आदि कठिन क्षेत्र हैं, लेकिन किसी न किसी को तो वहां तैनात करना ही होगा।
गौरतलब है की याचिकाकर्ता एक कर्नल है और वे अपना तबादला अंडमान-निकोबार किए जाने से नाखुश थे, जिसके लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें 15 दिनों के भीतर अंडमान-निकोबार जाकर कार्य संभालने के लिए कहा गया । जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने भी मामलें में दखल देने से इंकार कर दिया।
पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा –
‘आपको अपनी पोस्टिंग को लेकर शिकायत हो सकती है, लेकिन सेना में पोस्टिंग एक ऐसा मसला है जिस पर हम दखल नहीं देते। लद्दाख, अंडमान-निकोबार, पूर्वोत्तर राज्य कठिन इलाके हैं, लेकिन वहां भी किसी न किसी को तो तैनात करना होगा। हम आपकी कठिनाई समझने हैं, लेकिन हम सेना की पोस्टिंग मामले में दखल नहीं देते।’
‘आपको अपनी पोस्टिंग को लेकर शिकायत हो सकती है, लेकिन सेना में पोस्टिंग एक ऐसा मसला है जिस पर हम दखल नहीं देते। लद्दाख, अंडमान-निकोबार, पूर्वोत्तर राज्य कठिन इलाके हैं, लेकिन वहां भी किसी न किसी को तो तैनात करना होगा। हम आपकी कठिनाई समझने हैं, लेकिन हम सेना की पोस्टिंग मामले में दखल नहीं देते।’
वकील ने वपस ली याचिका
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता याचिकाकर्ता के वकील रंजीत कुमार ने कहा कि उनकी पत्नी भटिंडा में है और भटिंडा से अंडमान और निकोबार की दूरी 3500 किलोमीटर से अधिक है। उन्होंने कहा कि उनका साढ़े चार साल का बच्चा भी है। कुमार ने कहा कि इस तबादले की वजह से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह सैन्य अधिकारी के साथ प्रताड़ना है। इस पर पीठ ने कहा कि यह कठोर है, लेकिन किसी न किसी को अंडमान व निकोबार तो जाना होगा। जिसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली।