सुप्रीम कोर्ट ने एक अविवाहित युवती की 27 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने याचिका खारिज करते हुए कहा कि गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी जीने का मौलिक अधिकार है।
जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस एस. वी. एन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने 20 वर्षीय युवती की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। युवती ने दिल्ली हाईकोर्ट के तीन मई के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने गर्भावस्था खत्म करने की उसकी मांग खारिज कर दी थी।
बेंच ने महिला के वकील से कहा, हम कानून के विपरीत कोई भी आदेश पारित नहीं कर सकते। बेंच ने वकील से पूछा, कोख में पल रहे बच्चे को भी जीने का मौलिक अधिकार है, उसके बारे में आप क्या कहेंगे। बेंच ने कहा, गर्भावस्था की अवधि अब सात महीने से अधिक हो गई है। गर्भ में पल रहे बच्चे के जीने के अधिकार का किस तरह समाधान निकालेंगे।
नीट की तैयारी कर रही युवती
वकील ने तर्क दिया, भ्रूण अभी गर्भ में है और जब तक बच्चे का जन्म नहीं हो जाता। यह मां का अधिकार है। वह नीट परीक्षा के लिए कक्षाएं लेती है, लेकिन वह घर से बाहर नहीं निकल सकती। लेकिन बेंच ने विचार करने से इनकार कर दिया।