आत्महत्या से जुड़े एक केस की सुनवाई कर रहे कर्नाटक हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट का कहना है कि सिर्फ आत्महत्या करने के लिए कह देने को ही उकसावा नहीं माना जा सकता है। इस मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता को राहत दे दी और उसके खिलाफ जारी कार्यवाही को खत्म कर दिया। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि उसने सिर्फ अपने दुख को जाहिर किया था।

इस मामले की सुनवाई जस्टिस एम नागप्रस्न्ना कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘…याचिकाकर्ता, एक मात्र आरोपी, उस महिला के पति जिसका फादर के साथ कुछ रिश्ता था और उसने अपनी नाराजगी जाहिर कर कहा था कि ‘जाओ और खुद को लटका लो’, इसका मतलब यह नहीं है कि ये IPC की धारा 107 को आकर्षित करते हैं और धारा 306 यानी खुदकुशी को उकसाने के तहत अपराध बनेंगे।’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘मृतक के आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं, जिसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि चर्च का फादर होने के बाद भी याचिकाकर्ता की पत्नी के साथ उनके अवैध संबंध थे।’ कोर्ट का कहना था कि भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 107 में साफ लिखा है कि अगर आरोपी जानबूझकर ऐसे किसी का में मदद करता है, जो धारा 306 को आकर्षित करते हैं, तब ऐसे में इसे लागू किया जाएगा।

क्या था मामला
याचिकाकर्ता पर एक जूनियर पादरी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप थे। पादरी उडुपी जिले के एक स्कूल में प्रिंसिपल भी था। उनकी मौत 11 अक्टूबर 2019 को हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अभियोजन पक्ष का कहना था कि पादरी ने ऐसा कदम याचिकाकर्ता की तरफ से मिली धमकी के बाद ही उठाया था।

पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने पत्नी और फादर के बीच अवैध संबंधों को उजागर करने की धमकी दी थी।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 11 अक्टूबर 2019, को याचिकाकर्ता ने फादर को रात करीब 8 बजकर 30 मिनट पर कॉल किया था और पांच मिनट तक बात की। इस दौरान फादर की तरफ से याचिकाकर्ता की पत्नी को भेजे गए संदेश को लेकर बातचीत हुई। इनमें से एक संदेश में फादर ने याचिकाकर्ता की पत्नी से कहा था कि वह उसकी बहन की शादी तक जिंदा नहीं रहेगा।

इसके बाद याचिकाकर्ता को फादर की तरफ से कॉल किया गया, जहां याचिकाकर्ता ने कहा, ‘आपको खुद को लटकाना होगा, क्योंकि वह भी खुद को लटाकाकर मारने जा रही है।’ इसके बाद फादर प्रिंसिपल के कमरे में रात करीब 12 बजे फांसी के फंदे पर झूलते मिले थे।

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