जबलपुर। जबलपुर के रहने वाले याचिकाकर्ता ज्ञान प्रकाश ने याचिका दायर कर कहा हैं कि, शासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए एडवोकेट के पास कम से कम सात सालों के एक्सपीरियंस का होना आवश्यक है। जबकि प्रदेश भर में एक से दो वर्षो के अनुभव वाले कनिष्ठ वकील भी गंम्भीर आपराधिक प्रकरणों में पैरवी कर रहे है। यह दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन है। और शासन की इसमें संलिप्तता है।

जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायमूर्ति विजय शुक्ला की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार से पूछा कि, हाई कोर्ट एंव लोअर कोर्ट में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के विपरीत सात वर्षों से कम अनुभव वाले अधिवक्ता शासन की तरफ से आपराधिक मामलों में पैरवी कैसे कर रहे है?

कोर्ट ने तीन सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट की अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम हफ्ते में होगी।

गौरतलब है कि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 और 25 के तहत हाई कोर्ट या सेशन कोर्ट में किसी भी आपराधिक मामले की पैरवी के लिए लोक अभियोजक को ही नियुक्त किया जाना चाहिए,जिसे वकालत में न्यूनतम सात सालों का अनुभव हो।


याचिका में यह भी उल्लेख है कि, राजनीतिक दवाब में आकर योग्यता पूरी न करने वाले अधिवक्ताओ को न केवल संविदा पर नियुक्त किया जाता है,जबकि उनको अहम मामलों में पैरवी के लिए अधिकृत भी कर दिया जाता है।


रजिस्ट्रार जनरल की तरफ से एडवोकेट सिध्दार्थ राधेलाल गुप्ता ने बताया कि, पूर्व में भी कोर्ट ने इस बात पर संज्ञान लिया। पर अभी तक किसी प्रकार के ठोस कदम नही उठाए गए हैं।

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