इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) को विशेष कानून बताते हुए इससे जुड़े अपराधों को निजी मामला मानने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इस प्रकार के मामलों को समाज को प्रभावित करने वाला मानते हुए स्पष्ट आदेश जारी किया है कि विशेष कानून जैसे POCSO Act के अपराध को समझौते के आधार पर रद्द नहीं कर सकते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय को कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। छोटे बच्चों के साथ यौन अपराध करने वाले अपराधियों की ओर से रसूख और धनबल- बाहुबल का इस्तेमाल कर पीड़ितों को समझौते के लिए मजबूर किए जाने के मामले भी सामने आते रहे हैं। ऐसे में इस प्रकार के विशेष मामलों में समझौते के आधार पर केस को रद्द करने से इनकार का बड़ा असर पड़ना तय है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के क्रम में कहा है कि विशेष कानून की आपराधिक कार्यवाही को पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि POCSO Act के अपराध में नाबालिग की सहमति मान्य नहीं है। बाद में पीड़िता द्वारा किया गया समझौता आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हत्या, दुष्कर्म, डकैती आदि गंभीर अपराधों को समझौते के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता। यह प्राइवेट अपराध नहीं है। ऐसे अपराध का समाज पर गंभीर असर पड़ता है।

इसी के साथ कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपित के खिलाफ आजमगढ़ की पाक्सो की विशेष अदालत में चल रही आपराधिक कार्यवाही को समझौते के आधार पर रद्द करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने संजीव कुमार की याचिका पर दिया है। याचिका में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर केस कार्यवाही रद करने की मांग की गई थी। याची का कहना था कि ऐसे ही एक मामले फकरे आलम केस में हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर पाक्सो केस कार्यवाही रद कर दी थी। उसी के आधार पर इस केस को भी रद्द किया जाए।

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