दिल्ली हाईकोर्ट एक मामले पर सुनवाई करते हुए काफी नाराज हो गया। कोर्ट ने दिल्‍ली सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई है। हाईकोर्ट ने उपभोक्ता मंचों में महिलाओं के लिए पीने के पानी और शौचालय सहित बुनियादी सुविधाओं की कमी पर दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई। उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार इस तरह अदालतों पर दबाव नहीं डाल सकती, जिसके कारण उन्हें न्यायिक परियोजनाओं के लिए अपने बजट को मंजूरी दिलाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

दिल्‍ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा, ‘राज्य केवल हमारी अदालतों के बजट में कटौती करने में रुचि रखता है। हमने पाया कि एक जानबूझकर अपनाया गया प्रारूप है। हर चीज के वास्ते हमें आदेश के लिए उच्चतम न्यायालय जाना पड़ता है। उपभोक्ता मंच में महिला शौचालय नहीं है। आप जानबूझकर न्यायिक बुनियादी ढांचे के साथ ऐसा कर रहे हैं।’

‘दिल्‍ली सरकार से बहुत कम सहयोग’
हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि अस्पतालों और अदालतों और यहां तक कि जल निकासी व्यवस्था सहित प्रत्येक संस्थान के लिए उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ता है, क्योंकि दिल्ली सरकार से बहुत कम सहयोग मिल रहा है। नाराज पीठ ने कहा, ‘दिल्ली सरकार सहयोग नहीं कर रही है। वे न्यायाधिकरणों में अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करते…जमीनी स्तर पर काम शून्य है। क्या सभी जिला उपभोक्ता मंचों में महिला शौचालय है? यह मत सोचिए कि आप हमें इस तरह दबा सकते हैं। ऐसा मत कीजिए। जिला मंचों और राज्य आयोग में महिला शौचालय क्यों उपलब्ध नहीं हैं? कोई इरादा नहीं है। यह बहुत अनुचित है। जिला मंचों में महिला शौचालय न होना बहुत बुरा है।’

दिल्‍ली सरकार का आश्‍वासन
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि राज्य उपभोक्ता आयोग को शौचालय निर्माण के लिए लोक निर्माण विभाग को आदेश जारी करना होगा। बाद में हालांकि उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि तीन सप्ताह के भीतर जिला और राज्य उपभोक्ता मंचों में शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार का खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग राज्य आयोग के किसी भी आदेश पर जोर दिए बिना बुनियादी ढांचा प्रदान करेगा। अदालत ने मामले को 23 अप्रैल को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

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