पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि ED मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तलाशी और जब्ती अभियान के दौरान किसी व्यक्ति को परिसर के भीतर न तो कैद रख सकती है, न उसकी आवाजाही रोक सकती है। जस्टिस विकास बहल ने अवैध खनन से जुड़े धनशोधन के मामले में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के पूर्व विधायक दिलबाग सिंह और एक अन्य आरोपी कुलविंदर सिंह की गिरफ्तारी रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, ऐसा कोई कारण नहीं है कि उन व्यक्तियों को रोका जाए, जिनके परिसरों में तलाशी ली जा रही है। ED को तलाशी के दौरान व्यक्तियों की गतिविधियों को रोकने का अधिकार नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने दी थी ये दलील
याचिकाकर्ताओं दिलबाग सिंह और कुलविंदर सिंह ने धन शोधन रोकथाम अधिनियम (PMLA) मामले में उनकी गिरफ्तारी और ED की हिरासत में भेजने के आदेशों को चुनौती दी थी। आरोप था कि मकानों की तलाशी के दौरान याचिकाकर्ताओं और उनके परिवार के सदस्यों को ED ने चार जनवरी से आठ जनवरी तक अवैध रूप से हिरासत में रखा।

याचिकाकर्ताओं को आठ जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से साबित होता कि याचिकाकर्ताओं को तलाशी के समय अपने मकानों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी।

चाबी न मिले तो तोड़ ताला तोड़ने का हक
ED ने तलाशी और जब्ती पर अपने नियमों पर हवाला देते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं और अन्य व्यक्तियों की मौजूदगी जरूरी थी, क्योंकि लॉकर, तिजोरी, अलमारी, दस्तावेज और अन्य सामग्री को देखना था। कोर्ट ने कहा कि अगर चाबी के अनुरोध का पालन नहीं किया जाता है तो ED के पास लॉकर, तिजोरी या अलमारी का ताला तोड़ने का अधिकार है। कोर्ट ने ED के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता अपनी मर्जी से परिसर में थे।

पांच माह में डिक्री जारी नहीं होने पर कोर्ट नाराज
आदेश के बावजूद अपने ही कार्यालय (रजिस्ट्री) से करीब पांच माह बाद भी डिक्री तैयार कर जारी नहीं होने पर चौंके सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री की कार्यप्रणाली की खराब स्थिति पर नाराजगी जाहिर की। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने खेद प्रकट करने पर रजिस्ट्री के अधिकारियों पर कोई कार्रवाई तो नहीं की लेकिन रजिस्ट्रार (न्यायिक सूची) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अदालत के आदेशों के संदर्भ में डिक्री निकालने में कोई देरी न हो। कोर्ट ने कहा कि डिक्री जारी करने में बहानेबाजी की गई। तलाक की डिक्री से संबंधित इस मामले में बेंच ने कहा कि जब तक डिक्री उपलब्ध नहीं कराई जाती, तब तक अदालत के आदेश का पक्षकारों काे कोई लाभ नहीं मिलेगा।

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