हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कहा कि त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव को मिटाने के लिए समाज को घर पर अपने बातचीत के ढंग को बदलने की जरूरत है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सांवले रंग वाली महिलाओं को कम आत्मविश्वासी और असुरक्षित के रूप में पेश करने के लिए फेयरनेस क्रीम इंडस्ट्री (Fairness Cream Industry) की आलोचना की। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की पीठ एक वैवाहिक विवाद पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट की पीठ ने अपनी पत्नी को सांवले होने के कारण पति द्वारा दी जाने वाली गालियों पर ध्यान दिया और समाज से इस मानसिकता को बदलने की अपील की।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जजों ने कहा कि ‘सांवले रंग की तुलना में गोरी त्वचा को समाज की प्राथमिकता को बढ़ावा देने के लिए पति को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है।’ अदालत ने कहा कि सांवली त्वचा वाली महिलाओं को अक्सर असुरक्षित के रूप में पेश किया जाता है, जब तक कि वे गोरापन क्रीम का उपयोग नहीं करती हैं। अदालत के मुताबिक घर पर ऐसे विषयों पर चर्चा के तरीके में बदलाव की जरूरत है। इस मामले में पति ने पत्नी पर उसे छोड़कर चले जाने का आरोप लगाते हुए तलाक मांगा था। जबकि पत्नी ने गर्भावस्था के दौरान यातना, शारीरिक उत्पीड़न और उसके सांवले रंग से संबंधित भावनात्मक शोषण का आरोप लगाते हुए इस दावे का विरोध किया।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की ओर से पेश किए गए सबूतों को देखने के बाद पति की अपील खारिज कर दिया। पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया था और भरण-पोषण के लिए आवेदन करने के बावजूद उसे बिना कारण बताए छोड़ देने का आरोप लगाया था। जबकि पत्नी ने कहा कि उसके पति ने उसे प्रताड़ित किया, त्वचा के रंग के आधार पर अपमानित किया और घर से निकाल दिया।इस पूरे मामले पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने पत्नी के आरोपों को अधिक ठोस पाया और तलाक के लिए पति की अर्जी को खारिज कर दिया। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ाई से कहा कि किसी भी शख्स को केवल त्वचा के रंग के आधार पर अपने कानूनी रूप से विवाहित जीवनसाथी को छोड़ने की आजादी नहीं दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने वैवाहिक फैसलों से ऐसे पूर्वाग्रहों को खत्म करने के महत्व पर भी रोशनी डाली।