इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुर्घटना दावें को लेकर दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि पीड़ित पक्षकार मुआवजे के लिए अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट का दरवाज नहीं खटखटा सकता है। मुआवजे के भुगतना के लिए पीड़ित को पहले दीवानी कोर्ट की शरण लेनी होगी।यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने बिजनौर के प्राथमिक विद्यालय मीरापुर में तैनाती के दौरान विद्युत करंट से जान गंवाने वाले सहायक अध्यापक की पत्नी सारिका सैनी की ओर से पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा मुआवजा देने से इंकार करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।मामला बिजनौर जिले के नूरपुर ब्लॉक अंतर्गत मीरापुर प्राथमिक विद्यालय का है। 10 सितंबर 2022 को याची के सहायक अध्यापक पति कौशल कुमार विद्यालय के वाशरूम गए गए थे। वहां वो 11 हजार केबी विद्युत तार के संपर्क में आ गए और मौके पर उनकी मौत हो गई। जबकि, विद्यालय के एक अन्य सहायक अध्यापक जॉनी कुमार और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुमेर चंद्र इस दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। याची की तहरीर पर थाना चांदपुर में FIR दर्ज कराई गई, पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण करंट से मौत बताई गई।जिसके बाद याची ने पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के अधिशाषी अभियंता से मुआवजे की मांग की थी। जिसपर उपनिदेशक विद्युत सुरक्षा मुरादाबाद द्वारा जांच की गई और अपनी रिपोर्ट में दुर्घटना में घायल अध्यापक जॉनी कुमार और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुमेर कुमार को मुआवजा देने की सिफारिश की लेकिन याची को मुआवजा पाने का हकदार नहीं बताया। इस रिपोर्ट के आधार पर अधिशाषी अभियंता ने याची के दावे को खारिज कर दिया।याची ने जांच रिपोर्ट और दावा खारिज करने वाले आदेश को हाईकोर्ट ने चुनौती देते हुए मुआवजा दिलाने की मांग की। विद्युत विभाग के वकील प्रांजल मेहरोत्रा ने याचिका की पोषणीयता पर सवाल खड़ा किया। साथ ही यह भी दलील दी कि मृतक के करंट लगने की घटना के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया।जबकि याची के अधिवक्ता मनोज कुमार और सुधाकर यादव ने दलील दी कि यह मामला कठोर दायित्व का है। विद्युत विभाग की लापरवाही के कारण तार खुले थे, जिसके संपर्क में आने पर याची के पति की मौत हुई। इस लिए वह मुआवजा पाने की हकदार है।कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए यह माना की यह मामला कठोर दायित्व के सिद्धांत के दायरे में आता है लेकिन मुआवजे के दावों के लिए पीड़ित पक्षकार अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा नही खटखटा सकता। इसके लिए उसे नियमानुसार पहले दीवानी की शरण लेनी होगी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची को परिसीमा अधिनियम का लाभ लेते हुए निर्धारित दीवानी अदालत की में दावा दाखिल करने की स्वतंत्रता प्रदान कर दिया।