छत्तीसगढ़ में राज्य स्रोत नि:शक्तजन स्रोत संस्थान के नाम पर राज्य के आइएएस व राज्य सेवा संवर्ग के तकरीबन एक दर्जन अफसरों ने जमकर घोटाला किया था। इसी संस्थान में काम करने वाले कर्मचारी कुंदन सिंह ने जनहित याचिका दायर कर मामले की CBI जांच कराने और दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने जब मामले की जांच के लिए CBI को प्रकरण सौंपा तब हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ उस दौर के ताकतवर नौकरशाह सीधे सुप्रीम कोर्ट चले गए।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद CBI जांच पर रोक लगा दी। तब से यह स्थगन आदेश चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने CBI जांच पर रोक के साथ ही एक और व्यवस्था दी थी। पूरे मामले की सुनवाई का अधिकार हाई कोर्ट को ही दे दिया था। लिहाजा इस मामले की फाइल एक बार फिर खुल गई है।

जनहित याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में फाइनल हियरिंग चल रही है। अंतिम सुनवाई के बाद हाई कोर्ट का फैसला भी इस मामले में आना है। याचिकाकर्ता ने पीआइएल में बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार की CBI से जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट के समक्ष दस्तावेज भी पेश किया है। दस्तावेजों की पड़ताल और आला अफसरों के बयान के आधार पर यह बात भी सामने आई थी

कि इस पूरे मामले में एक हजार करोड़ से भी ज्यादा के सरकारी धन को अफसरों ने फर्जी दस्तोवजों के आधार पर लूटा है। फाइनल हियरिंग के दौरान हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने उन अफसरों को तलब किया है जिसने इस फर्जीवाड़े से अपने आपको पाक-साफ बताते हुए खुद ही क्लीनचिट दे दी है। कोर्ट ने ऐसे अफसरों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है और इनकी सूची भी राज्य सरकार से मांगी है।

ये है मामला
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के माध्यम से वर्ष 2018 में हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसके अनुसार पूर्व सरकार के कार्यकाल के दौरान के छह आइएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती के अलावा राज्य सेवा संवर्ग के अफसर राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो और एमएल पांडेय ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) (राज्य स्रोत नि:शक्त जन संस्थान) के नाम पर 630 करोड़ रुपये का घोटाला किया है। राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआइ मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड के जरिए बैंक अकाउंट खुलवा लिए और इसी अकाउंट में फर्जी तरीके से वेतन का आहरण भी करते रहे।

सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच को यह मिली जानकारी
इस मामले में पांच साल पहले हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में संचालित ही नहीं हो रही है। सिर्फ पेपरों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से एक हजार करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 साल से भी ज्यादा समय तक किया गया। तब मामले की सुनवाई जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच में हुई है। डिवीजन बेंच ने पूरे मामले की सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे। याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने तत्कालीन प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा आलोक शुक्ला सहित 12 अधिकारियों के खिलाफ CBI को एफआइआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे।

CBI को हाई कोर्ट ने ये दिए थे निर्देश
>सात दिनों के भीतर दोषी अफसरों के खिलाफ दर्ज करें एफआइआर।
>समाज कल्याण विभाग से समस्त मुख्य दस्तावेज को 15 दिनों के भीतर करें जब्त।
>CBI पूरे मामले की स्वतंत्र और सही ढंग से जांच करे। पूरी जांच पर हाई कोर्ट निगरानी करेगा।
>CBI को ऐसा लगे कि उसे गाइड लाइन चाहिए,वह हाई कोर्ट से सहायता ले सकेगी।

तत्कालीन मुख्य सचिव ने यह दिया था जवाब
डिवीजन बेंच के निर्देश पर तत्कालीन चीफ सिकरेट्री अजय सिंह ने मामले की जांच कराई थी। इसके बाद कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में 200 करोड़ की गड़बड़ियों का राजफाश किया था। तब डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की थी कि यह गड़बड़ी नहीं संगठित अपराध है।

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