राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि कर्मचारी को अनिश्चित काल के लिए निलंबित रखना, उसके मौलिक अधिकार के खिलाफ है. इसके साथ ही अदालत ने MDS विश्वविद्यालय के कर्मचारी के 3.8 साल पुराने निलंबन आदेश को रद्द करते हुए उसे एक माह में पुन सेवा में लेने को कहा है.

अदालत ने विश्वविद्यालय प्रशासन को स्वतंत्रता दी है कि वह याचिकाकर्ता को आरोप पत्र देकर उस पर विधि अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश रवि जोशी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

याचिका में बताया कि याचिकाकर्ता महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर का कर्मचारी है. उसके खिलाफ साल 2020 में दर्ज आपराधिक मामले में उसे 21 जनवरी, 2021 को जेल भेजा गया था. वहीं 48 घंटे जेल में रहने के आधार पर विवि प्रशासन ने 5 फरवरी, 2021 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया. याचिका में कहा गया कि विवि प्रशासन ने न तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की और ना ही अब तक पुलिस ने उसके खिलाफ आरोप पत्र पेश किया है.

इसके बावजूद भी उसे अब तक निलंबित रखा गया है. पूर्व में हाईकोर्ट के आदेश में याचिकाकर्ता ने विवि में इस संबंध में अभ्यावेदन भी दिया था, लेकिन विवि प्रशासन ने उसे 21 जनवरी से 24 फरवरी तक जेल में बंद होने के आधार पर अभ्यावेदन भी खारिज कर दिया.

याचिका में कहा गया कि मामले में पुलिस ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की है और ना ही विभाग ने उसके खिलाफ विभागीय जांच शुरु की है. ऐसे हालातों में उसे तीन साल से अधिक अवधि से निलंबित रखना कानून की नजर में उचित नहीं है. इसलिए उसके निलंबन आदेश को रद्द किया जाए.

इसका विरोध करते हुए विवि की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के न्यायिक अभिरक्षा में बिताई अवधि को देखते हुए उसे निलंबित किया गया था. यदि उसका निलंबन समाप्त किया गया तो इससे अन्य कर्मचारियों में गलत संदेश जाएगा और विवि की छवि को भी नुकसान देगा. ऐसे में याचिका को खारिज किया जाए. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने निलंबन आदेश और याचिकाकर्ता का अभ्यावेदन निरस्त करने के आदेश को रद्द कर उसे पुनः सेवा में लेने को कहा है.

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