न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और केएम जोसफ़ की पीठ ने लगभग 40% हाईकोर्ट जजों के पद रिक्त होने पर चिंता जताई। पीठ ने कहा कि अगर केंद्र सरकार समय पर नियुक्त होने वाले जजों के नामों पर कोई निर्णय नहीं लेती है तो नियुक्ति से छह महीने पहले जजों के नामों की सूची भेजने का कोई मतलब नहीं है। इस संदर्भ में, अटर्नी जनरल ने कहा कि वह इस मुद्दे को उचित अथॉरिटी के साथ उठाएँगे ताकि नियुक्तियों के लिए अनुशंसित नामों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में लगने वाले समय में कमी की जा सके। पीठ ने कहा, “यह तथ्य है कि लगभग 40% जजों का पद ख़ाली है और 2018 में रिटायर होने वाले जजों की तुलना में मात्र 13 जजों की ही नियुक्ति हुई। 2019 में 1.10.2019 तक रिटायर होनेवाले जजों की संख्या नियुक्ति से 20 अधिक है और इस साल अभी 18 और रिक्तियाँ होनेवाली हैं और इस तरह 1.1.2018 की तुलना में 1.1.2020 को जजों की संख्या कम होगी”। अदालत ने कहा कि सीजेआई ने मलिक मज़हर सुल्तान मामले में निचली अदालतों में नियुक्तियों को लेकर दिशानिर्देश जारी किया। हालाँकि, हाइकोर्टों में रिक्तियाँ बढ़ रही हैं। “…इस तरह, समय का तक़ाज़ा यह है कि हाइकोर्टों में भी रिक्त पदों को जितना जल्दी हो, भरा जाए।” पीठ ने कहा। परिपाटी के अनुसार, रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए नामों के सुझाव की सूची छह माह पहले भेजी जाती है ताकि नियुक्ति की सारी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिले। “…परिपाटी यह है कि रिक्तियों को भरने के लिए नामों की सूची छह माह पहले भेजी जाए। यह एक ऐसा पक्ष है जिस पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ग़ौर करेंगे। छह माह की इस अवधि इसलिए दी गई है ताकि नियुक्ति तक की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए पर्याप्त समय मिल पाए। इस तरह, नामों की सूची छह माह पहले भेजने की बात तभी सार्थक होगी जब नियुक्ति की यह पूरी प्रक्रिया छह माह की इस अवधि के भीतर पूरी हो जाए और सरकार को इसके लिए अवश्य ही प्रयास करना चाहिए,” पीठ ने कहा। इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने कहा कि अटर्नी जनरल जो कि इस पद पर कार्य करने के अलावा एससीबीए के अध्यक्ष होने के साथ-साथ बार के वरिष्ठतम सम्मानित सदस्य भी हैं, और अपनी सभी तरह की भूमिकाओं के साथ न्याय करने के क्रम में यह देखना उनका काम होगा कि हर स्तर पर जजों की तुरंत नियुक्ति से इस व्यवस्था को मज़बूत किया जाए। पीठ ने यह मंतव्य मै. पीएलआर प्राजेक्ट्स लिमिटेड की एक याचिका पर ग़ौर करते हुए दिया जिसमें उसने वकीलों की लगातार हड़ताल के कारण अपने मामले को ओडिशा से बाहर भेजने की माँग की थी। लंबित मामलों की भारी भीड़ और जजों पर कार्य के बोझ की चर्चा करते हुए पीठ ने कहा कि अगर नियुक्तियाँ समय पर नहीं होती हैं तो वर्ष 2020 में जजों की संख्या 2018 की तुलना में काम होगी। न्यायमूर्ति बोबडे की टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की इन बातों का महत्व जजों की नियुक्ति को लेकर अगले सीजेआई न्यायमूर्ति बोबडे के बयान के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण हो जाता है। न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा था कि सरकार न्यायिक नियुक्तियों में देरी नहीं कर रही है। न्यायमूर्ति बोबडे ने एनडीटीवी को एक साक्षात्कार में कहा, “मैं नहीं समझता हूँ कि इसमें देरी हो रही है, तथ्य यह है कि कॉलेजियम के सुझावों पर, जहाँ तक कि मुझे याद है, बहुत ही त्वरित गति से कार्रवाई हो रही है। कुछ (देरी) हुआ है क्योंकि हमने (कॉलेजियम) अंतिम समय में कुछ परिवर्तन किया – सहमति प्राप्त करने के लिए आपको उस प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। सामान्यतः, वे (सरकार) इसमें देरी नहीं करते।” इस संदर्भ में इस बात पर ग़ौर करना ज़रूरी होगा कि कॉलेजियम की अनुशंसा पर समयबद्ध निर्णय लेने के बारे में आदेश देने को लेकर दो याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। इस बात को रेखांकित करते हुए कि कॉलेजियम की कुछ फ़ाइलें केंद्र सरकार के पास लंबित हैं, एनजीओ सीपीआईएल ने एक जनहित याचिका दायर कर इस निर्देश की माँग की है कि जिन नामों पर कॉलेजियम ने मुहर लगा दी है उन नामों पर सरकार छह सप्ताह की समय सीमा के भीतर निर्णय ले। न्याय विभाग के वेबसाइट के अनुसार, 1 नवंबर तक, हाईकोर्ट जजों की कुल 1079 पदों में से 424 पद रिक्त हैं।