नई दिल्ली। कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग में अब देश के शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों और दोनों सदनों के 790 सांसदों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। एक साल तक सभी सांसदों के वेतन से तीस फीसद धनराशि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जाएगी। हर साल हर सांसद को मिलने वाली पांच करोड़ रुपये की सांसद निधि भी दो साल तक सरकार के कंसोलिडेटेड फंड में जाएगी।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने इस आशय के अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। यह अध्यादेश एक अप्रैल, 2020 से एक साल के लिए अमल में आ रहा है। इस फैसले के तत्काल बाद ही राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों ने भी स्वेच्छा से साल भर तक तीस प्रतिशत कम वेतन लेने का एलान किया है। कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सोमवार को बताया कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हर किसी का योगदान चाहिए। ऐसे मे अगर दो साल तक सांसद निधि रुकती है तो सरकार के खाते में 7900 करोड़ रुपये आएंगे।
लॉक डाउन का आर्थिक प्रभाव कितना खतरनाक होगा इसका अहसास पूरे विश्व को है। ऐसे में हर किसी की भूमिका जरूरी है। पहले उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की ओर से सांसदों से आग्रह किया गया था कि वह सांसद निधि का एक-एक करोड़ रुपया दें। लेकिन अब वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 की पूरी सांसद निधि सरकारी खाते में जाएगी।
श्री जावडेकर ने बताया कि सांसदों के अलावा, प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों के वेतन का 30 फीसद वेतन कम होगा। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों का वेतन का ढांचा सांसदों के वेतन से अलग होता है। सांसदों का मासिक वेतन एक लाख रुपये और संसदीय क्षेत्र का मासिक भत्ता 70 हजार रुपये के अलावा अन्य भत्ते भी होते हैं। सांसदों का वेतन संसद के तय कानून से ही निर्धारित होता है। ऐसे में इनमें कटौती का फैसला भी कानून में बदलाव के जरिये ही होगा। इसलिए अध्यादेश को संसद सत्र में लाया जाएगा।
संसद सदस्य अधिनियम, 1954 के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन का अध्यादेश मंजूर किया गया है जो इसी महीने की शुरुआत से लागू हो गया है। श्री जावडेकर ने बताया कि कोरोना संकट को देखते हुए राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सभी राज्यपालों ने भी स्वेच्छा से साल भर तक तीस फीसदी कम वेतन लेने का निर्णय लिया है।