नई दिल्ली
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की धारा-115 व आईपीसी की धारा-309 (आत्महत्या का प्रयास) की विसंगतियों की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।
सुको ने अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया और केंद्र सरकार से यह पूछा कि इस कानून के प्रावधान को कैसे उचित ठहराया जा सकता है, जो किसी व्यक्ति को गंभीर तनाव की स्थिति में परोक्ष रूप से खुदकुशी करने की अनुमति देता है।
ज्ञातव्य हो कि धारा-309 दंडनीय अपराध है, जिसके अंतर्गत एक वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है। जबकि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट-2017 की धारा 115 के तहत आत्महत्या की कोशिश व्यक्ति भारी तनाव में करता है। ऐसे में उसे अपराधी मानकर दंडित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के लिए सरकार का कर्तव्य है कि उसे मानसिक रोगी मानकर उसके इलाज से लेकर उसका पुनर्वास करे, ताकि ऐसा फिर से होने की आशंका कम हो सके।
गौरतलब है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में पिछले 155 साल से कोई भी संशोधन नहीं किया गया है।