भोजशाला-कमल मौला मस्जिद परिसर में जैन समुदाय के लिए पूजा करने के अधिकार की मांग वाली याचिका वापस ले ली गई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दायर यह रिट याचिका शुक्रवार को तकनीकी आधार पर वापस हुई। दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता सलेकचंद जैन द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि विवादित परिसर में एक बार एक जैन गुरुकुल और एक जैन मंदिर था जहां देवी अंबिका की मूर्तियां स्थापित की गई थीं।

हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा ने रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि याचिका न तो उचित प्रारूप में प्रस्तुत की गई है और न ही इसे दायर करने में देरी का कारण बताया गया है। इसके बाद जैन के वकीलों ने याचिका वापस ले ली और अदालत से निर्धारित प्रारूप में नया आवेदन दायर करने की अनुमति मांगी। बाद में एकल पीठ अदालत की मंजूरी मिलने के बाद याचिका वापस ले ली गई।

इसमें (याचिका में) दावा किया गया कि भोजशाला परिसर में एक जैन गुरुकुल और जैन मंदिर हुआ करता था, जहां छात्रों को जैन भिक्षुओं और विद्वानों द्वारा शिक्षा दी जाती थी। इस परिसर में संस्कृत, प्राकृत और अन्य भाषाओं में ग्रंथों के अनुवाद का काम भी किया जाता था। इसलिए जैन समुदाय के लोगों को इस स्थान पर पूजा करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

याचिका में यह भी दावा किया गया कि भोजशाला परिसर में जिस मूर्ति को हिंदू समुदाय वाग्देवी (देवी सरस्वती) की मूर्ति बता रहा है, वह वास्तव में जैन समुदाय की देवी अंबिका (जैन यक्षिणी) की मूर्ति है, जिसे धार के राजा भोज ने 1034 ई. में इस परिसर में स्थापित किया था।

याचिका में मांग की गई थी कि लंदन के एक संग्रहालय में रखी गई प्रतिमा को भारत वापस लाया जाए और धार के भोजशाला परिसर में फिर से स्थापित किया जाए। हिंदू समुदाय भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष 11वीं सदी के इस स्मारक को कमल मौला मस्जिद कहता है। यह परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। भोजशाला सर्वे मामले में हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक एएसआई को विवादित परिसर की पूरी सर्वे रिपोर्ट 15 जुलाई तक जमा करनी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page