न जाने कब हमारा पीछा छोड़ेगी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति में लगातार तीसरे महीने बढ़ोतरी हुई है। डब्ल्यूपीआई का इतना उच्च स्तर इससे पहले अक्टूबर 2012 में रहा था, जब मुद्रास्फीति 7.4 प्रतिशत पर पहुंची थी।
इस कोरोना काल में भी इस महंगाई ने कोई भेदभाव नही किया। क्या छोटा क्या बड़ा सबकी समान रूप से जेब ढीली कर रखी है। जो दाल पहले 80 से 90 रुपए किलो मिलती थी ; अब 100 से 120 रुपये किलो हो गई हैं। पहले आदमी जो तेल 90 रुपए किलो ख़रीदता था। वह अब 130 हो गई हैं। इससे आम आदमी के साथ साथ व्यापारी वर्ग भी परेशान हैं। पर यह महंगाई हैं कि, सुधरने का नाम ही नही लेती व्यापारी वर्ग का कहना है जो आदमी पहले एक किलो दाल ख़रीदता था। अब सिर्फ आधा किलो लेकर ही चला जाता हैं। न कुछ बिक रहा है ना कोई खरीद रहा है कोरोना के चलते लोग दुकानों पर भी कम ही दिखाई देते हैं। कोरोना की तालाबंदी ने घूमने फिरने पर पाबंदी तो लगा ही दी थी। पर किसी काम के लिए भी अगर प्रस्थान हो तो,100 रुपए पर कुंडली मारकर पेट्रोल महाशय इसकी भी अनुमति नही देते, और कहते है जब तक महंगाई दीदी रहेगी तब तक ना उतरूंगा, उसके बाद शायद सोचूँ !….
ICRA (इन्वेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी) को यह उम्मीद है कि मुद्रास्फीति अगले दो महीनों तक बढ़ेगी और अपने चरम पर प्रमुख मुद्रास्फीति 11-11.5 प्रतिशत और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति 8-8.5 प्रतिशत पर रह सकती है। अब ना जाने महंगाई और क्या-क्या गुन खिलाएगी और जनता को कितना पानी पिलाएगी।
कोरोना काल की इस महंगाई का तेज इतना तेज है कि,
सब जेब से अंधे हो चुके हैं। अब देखना ये होगा कि कब महंगाई रूपी देवी अपने तेज को कम करेंगी या जनता को हर बार की भांति , इस बार भी अपनी जेब से समझौता करना पड़ेगा….।
ताल ठोंकती हैं महंगाई
अब जनता की शामत आई
हँसे पेप्सी कोका – कोला
औंधे डिब्बे , तवा – पतीला
– सिद्धांत त्रिपाठी