दिल्ली में गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। मंगलवार को तापमान कई स्थानों पर पारा 50 डिग्री के पास पहुंच गया। गर्मी से जहां लोग बेहाल हैं, वहीं राजधानी की एक कंज्यूमर कोर्ट ने खराब बुनियादी ढांचे पर अफसोस जताया और भीषण गर्मी की वजह से एक मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। द्वारका स्थित उपभोक्ता विवाद फोरम जिसके अध्यक्ष सुरेश कुमार गुप्ता, सदस्य हर्षाली कौर और रमेश चंद यादव हैं, ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘कोर्ट रूम में न तो एसी है और न ही कूलर। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा है। कोर्ट रूम में बहुत गर्मी है, जिससे पसीना आता है और इस तरह दलीलें सुनना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, वाटर सप्लाई नहीं है, यहां तक कि वॉशरूम जाने तक के लिए पानी नहीं है।’
नवंबर तक के लिए टाली सुनवाई
कोर्ट ने आदेश में कहा, ‘ऐसी परिस्थितियों में दलीलें नहीं सुनी जा सकतीं, इसलिए मामले को बहस के लिए स्थगित किया जाता है।’ मामले की अगली सुनवाई अब 21 नवंबर, 2024 को होगी। यह आदेश दिखाता है कि देश में निचली अदालतें और ट्रिब्यूनल किस तरह संसाधनों की कमी से जूझते हुए काम करती हैं। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट के अनुसंधान और नियोजन केंद्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे देश भर में 4,000 से ज्यादा कोर्ट रूम और जजों के लिए 6,000 से ज्यादा आवासीय घरों की भारी कमी है।
जिला कोर्ट में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
रिपोर्ट में बताया गया, ‘जिला न्यायपालिका में जजों की स्वीकृत संख्या 25,081 है। इनके लिए 4,250 कोर्ट रूम और 6,021 आवासीय इकाइयों की कमी है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 40.78 प्रतिशत और त्रिपुरा में 35.93 प्रतिशत की कमी है, जो कोर्ट रूम की सबसे ज्यादा कमी है। दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में न्यायिक अधिकारियों के लिए आवासीय आवास की 61 प्रतिशत कमी है। न्यायपालिका की ताकत समय पर न्याय देने की इसकी क्षमता में निहित है। इसे पर्याप्त फिजिकल और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता के साथ प्रभावी रूप से सुरक्षित किया जा सकता है।’
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि न्यायिक बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए सुविधाओं से लैस कोर्ट रूम सबसे बेसिक (बुनियादी) पहलू है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कुशल न्याय वितरण के लिए हर जज के पास अत्याधुनिक कोर्ट रूम होना चाहिए। हालांकि, बुनियादी ढांचे में वृद्धि जजों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ तालमेल नहीं बैठा पाई है।’ साथ ही यह भी कहा गया है कि 59 प्रतिशत कोर्ट रूम में बैक-अप बिजली तक नहीं है।