सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सरकार द्वारा 1957 से 2016 के बीच किए गए जमीन अधिग्रहण को सही बताया है। कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इन जमीनों पर पहले से ही स्कूल और हॉस्पिटल जैसे जरूरी सार्वजनिक सेवाओं वाले स्थलों का निर्माण है। बकौल कोर्ट, अगर अधिग्रहीत जमीनें वापस की जाती हैं तो इन सभी को ध्वस्त करना होगा। इसके अलावा उस समय लोगों को जो मुआवजा दिया गया होगा उसे भी वापस लेना होगा।
कोर्ट ने कहा कि इससे उन प्रोजेक्ट्स पर भी असर पड़ेगा जो अभी जारी है। कोर्ट के अनुसार, उन निर्माणों को भी तोड़ना पड़ेगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि इन जमीनों के मालिकों को सही मुआवजा नहीं मिलना चाहिए, वह भी ब्याज के साथ। साथ ही जमीन अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत जो भी लाभ मिलते हैं वह भी दिये जाने की बात कही।
दिल्ली हाईकोर्ट ने बदला था फैसला
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए अधिग्रहण को गलत करार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 17 मई को यह फैसला पलट दिया। हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था वह भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के तहत लागू नए प्रावधानों की वजह से था।
कोर्ट ने धोखाधड़ी के मामलों का किया जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने उन वाकयों का भी जिक्र अलग से किया जिनमें कई जमीन मालिकों के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह एक समर्पित बेंच का गठन करे। यह बेंच ऐसे मामलों को देखेगी जहां न तो सरकार ने न तो जमीन को कब्जे में लिया और न ही उसका मुआवजा जमीन मालिक को दिया। सुप्रीम कोर्ट ने नए अधिग्रहण का समय 1 साल बढ़ा दिया है।