सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से अरावली क्षेत्र में अवैध खनन रोकने को कहा है। अदालत ने कहा कि सतत विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाया जाए। दोषी अफसरों पर कार्रवाई भी सुनिश्चित की जाए।
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने कहा सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। अरावली में अवैध खनन को रोकना होगा। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस संबंध में आवश्यक कदम उठाए जाएं। अन्यथा, पहाड़ों के नाम पर केवल कोरी संरचनाएं होने का क्या फायदा? सतत विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा
अदालत अरावली पर्वतमाला में कथित अवैध खनन से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही है। दरअसल 2009 में, अदालत ने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अरावली पहाड़ियों में प्रमुख और छोटे खनिजों के खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। राजस्थान सरकार ने पहले अदालत से कहा था कि जहां तक खनन गतिविधियों का सवाल है, अरावली पहाड़ियों और अरावली पर्वतमाला के बीच वर्गीकरण के मुद्दे पर फैसला देने की जरूरत है। लेकिन अदालत ने कहा था कि हम प्रथम दृष्टया महसूस करते हैं कि यदि राज्य सरकार मानती है कि अरावली रेंज में खनन गतिविधियां पर्यावरण हित के लिए भी हानिकारक हैं, तो राज्य सरकार को अवैध खनन को रोकना चाहिए।
जानकारी के अनुसार 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में माइनिंग बैन कर दिया था, पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय की अनुमति से ही खनन हो सकता है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि अवैध माइनिंग से राजस्थान में 1967 से लेकर 2018 तक अरावली का 25 प्रतिशत हिस्सा गायब हो गया। सुप्रीम कोर्ट के बैन के बाद भी अरावरी का कटान नहीं थमा है।