बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा एक जोड़े को दिए गए तलाक के आदेश को रद्द करने से इनकार किया है। इस मामले में अदालत ने यह भी कहा है कि झूठ का सहारा लेते हुए पति और ससुराल वालों पर मामले दर्ज करना क्रूरता के दायरे में आता है। दरअसल हाईकोर्ट में एक महिला द्वारा याचिका दायर की गई थी। याचिका में महिला ने अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की थी। इसके अलावा फैमिली कोर्ट द्वारा पारित तलाक के आदेश को भी चुनौती दी गई। महिला के पति ने पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा था।
पति-ससुराल वालों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराना क्रूरता- हाईकोर्ट
अपने आदेश में न्यायमूर्ति वाई जी खोबरागढ़े ने बताया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू करना और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करना अपने आप में क्रूरता नहीं है। लेकिन महिला द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस में झूठी और आधारहीन रिपोर्ट दर्ज कराना निश्चित रूप से क्रूरता के दायरे में आता है।
महिला के पति ने किया यह दावा
महिला के पति ने दावा किया कि 2004 में दोनों की शादी हुई थी और इसके बाद 2012 तक दोनों साथ रहे। 2012 में उनकी पत्नी अपने माता-पिता के पास चली गई और उन्हीं के साथ रहने लगीं। महिला द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ कई फर्जी आपराधिक मामले दर्ज कराए गए। इसके बाद पति द्वारा पारिवारिक न्यायालय में पत्नी के खिलाफ याचिका दायर की गई। याचिका में बताया गया कि झूठ के आधार पर दर्ज कराए गए मामलों की वजह से उन्हें मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। पति द्वारा यह भी दावा किया गया कि उनकी पत्नी ने उनके पिता और भाई के खिलाफ छेड़छाड़ के झूठे मामले दर्ज कराए। इस तरह से पूरा परिवार मानसिक रूप से परेशान रहा और समाज में अपनी इज्जत भी गंवाई।
निचली अदालत का आदेश एकदम सही- हाईकोर्ट
अदालत में महिला द्वारा दावा किया गया कि उन्हें ससुराल वालों ने प्रताड़ित किया था और इस वजह से शिकायत दर्ज कराई गई। पीठ ने कहा कि महिला की ओर से क्रूरता हुई है और निचली अदालत का आदेश एकदम सही है। हाईकोर्ट ने महिला की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि तलाक देने के निचली अदालत के आदेश में कोई समस्या नहीं है।