दिल्ली शराब नीति मामले में ईडी की रिमांड पर चल रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने के लिए एक बार फिर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट ने एक बार फिर इस याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लोकतंत्र को अपने तरीके से काम करने दें। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान साफ कर दिया कि लोकतंत्र को कोई निजी एजेंडे के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि आप पहले दूसरे फोरम में भी इस मुद्दे को उठा चुके हैं। कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि वह दिल्ली के उपराज्यपाल को इस मसले पर किसी तरह का कोई निर्देश नहीं देने जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि एलजी को हमारे मार्गदर्शन की कोई जरूरत नहीं है। वो कानून के हिसाब से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 मार्च को भी ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर दिया था। उस दौरान भी हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया था। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या इसमें कोई कानूनी मनाही है? साथ ही कोर्ट ने कहा कि इसमें न्यायिक दखल आवश्यक नहीं। अगर कोई संवैधानिक विफलता है तो एलजी उसे देखेंगे। उनकी सिफारिश पर राष्ट्रपति निर्णय लेंगे।

कोर्ट ने आगे कहा था कि हमने दिल्ली के एलजी का बयान भी अखबारों में पढ़ा है। हमे पता है कि ये मामला उनके संज्ञान में है। फिलहाल यह मामला उन्हें ही देखने दीजिए।राष्ट्रपति शासन लगाने का आदेश कोर्ट नहीं देता। हम याचिका में लगाए गए आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। लेकिन यह विषय ऐसा नहीं है कि इसपर कोर्ट आदेश दे।

बता दें कि दिल्ली के उपराज्यपाल वी। के। सक्सेना ने बुधवार को कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी सरकार जेल से नहीं चलाई जाएगी। सक्सेना की यह टिप्पणी आम आदमी पार्टी (आप)  के नेताओं के उन बयानों की पृष्ठभूमि में आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि अरविंद केजरीवाल जेल में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे।

गौरतलब है कि केजरीवाल ने मंगलवार को ईडी की हिरासत से अपना दूसरा कार्य आदेश जारी किया था। स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि सभी सरकारी अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिक में लोगों के लिए दवाएं और जांच व्यवस्था उपलब्ध हों।

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