आज 3 दिसंबर को अधिवक्ता दिवस (एडवोकेट डे) मनाया जाता है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर भारत भर में अधिवक्ता दिवस होता है। राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ संविधान समिति के अध्यक्ष भी थें, इन सबके पहले वह वक़ील रहें हैं।
वकालत विश्व भर में अत्यंत सम्मानीय और गरिमामय पेशा है। भारत में भी वकालत गरिमामय और सत्कार के पेशे के तौर पर हर दौर में बना रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों से अधिक योगदान किसी और पेशे का नहीं रहा। स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों ने जमकर लोहा लिया है।
स्वतंत्रता ही नहीं अपितु जब स्वतंत्रता मिली और नए भारत को गढ़ने का समय आया तब भी वकीलों की महत्ता बनी रही। महात्मा गांधी से लेकर बी आर अम्बेडकर तक लोग वकालत के पेशे से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले रहे हैं। इन सब भारत की महान विभूतियों के प्रारंभिक पेशे वकालत ही रहे बाद में यह लोग भले राष्ट्रपति मंत्री हुए परन्तु प्रारंभ में वकील ही रहे।
राजनीति के प्रदार्पण के पहले वकालत एक तरह की परंपरा रही है। अधिकांश राजनेताओं का प्रारंभिक पेशा वकालत है। मौजूदा मोदी सरकार में भी दर्जनभर से ज्यादा केबिनेट मंत्री वक़ील है। लगभग इतने ही वकील भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में भी रहें हैं।
किसी युग में वकालत इंग्लैंड का राजशाही पेशा रहा है। संभ्रांत घरानों के लोग वकालत करते थे। वकील के गाउन में पीछे दो जेब होती थी, इन पीछे दो जेबों का अर्थ था अपने क्लाइंट से कोई राशि नहीं मांगी जाना अर्थात क्लाइंट जो चाहे अपनी इच्छानुसार जेब में परिश्रमिक डाल जाए।
अधिवक्ता की गरिमा वर्तमान भारत में भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। अनेकों पेशों का आज आधुनिक बाज़ारवादी युग में प्रवेश हुआ है पर वकालत की चमक पर कोई पॉलिश अब तक भरी नहीं हुई है। आज भी भारतभर में बड़ी संख्या में लोग अधिवक्ता के लिए रजिस्टर हो रहे हैं।
हालांकि आज समय के साथ इस पेशे के अर्थ अवश्य बदल गए है। धन कमाने के उद्देश्य से आज वकालत की जाने लगी है, आज हर वर्ग विशेष का व्यक्ति वकालत में दांव खेलने आ रहा है। जो जितना योग्य और निषांत प्रतिभा का धनी है उतना वकालत में सफल है। आज सफलता का अर्थ धन कमाना है, सफल वही है जिसने अधिक धन कूटा है क्योंकि सारा परिवेश ही इस प्रकार का बना हुआ, वैधानिक से लेकर सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह धन के आसपास है इसलिए वकालत भी धन कमाने के साधन के रूप हो चली है।
इस पेशे का अजीब रहस्य है कि इस ही पेशे में एक ही विषय का अध्ययन कर कोई व्यक्ति अच्छी संपदा एकत्रित कर लेता है और कोई शून्य रह जाता, इतना रहस्यमय पेशा कोई अन्य नहीं मालूम होता है। वकालत धन के मामले में संपूर्ण योग्यतावादी विचार देती है अर्थात जो जितना अधिक योग्य उतना धनवान और सफल।
इन सब बाज़ारवादी विचारों के पूर्व अधिवक्ता आज भी मानवतावादी विचारों और तथा मानवीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है। जहां कहीं मानवीय मूल्यों का अतिक्रमण होता है वहां अधिवक्ता की उपलब्धता प्रतीत हो जाती है।
भारत की सारी न्याय व्यवस्था अधिवक्ता के काम पर टिकी हुई है। इतना कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि न्याय मिल ही इसलिए रहा है क्योंकि अधिवक्ता उपलब्ध है। अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी है, कभी कभी वह न्यायधीश से उच्च स्तरीय प्रतीत होतें क्योंकि संपूर्ण न्याय व्यवस्था का भार इन ही काले कोट के कंधों पर है। अगर अधिवक्ता न हो तो भारत की जनता को न्याय मिलना असंभव सा हो चले।
यदि इस विषय पर अधिक विस्तृत अध्ययन किया जाए तो विधि शासन को बनाए रखने में अधिवक्ता की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यक्ति अपने अधिकारों के अतिक्रमण होने पर न्यायालय की ओर रुख करता है और न्यायालय का रास्ता वक़ील के मार्गदर्शन में ही पाया जाता है। भारत की विषाद न्याय व्यवस्था को समझने और उस पर कार्य करने के लिए विशेष कौशल चाहिए होता है, आम जन साधारण का ऐसा कौशल पाना सरल कार्य नहीं है। अधिवक्ता का अभ्यास ही ऐसे कौशल को जन्म देता है। अधिकारों के अतिक्रमण की दशा में अधिवक्ता की सहायता लिया जाना आवश्यक है। कोई अधिवक्ता ही आपके वैधानिक और मौलिक अधिकारों के लिए न्यायालय तक आपको ला सकता है।
मनुष्य की असभ्य युग से सभ्य युग तक आने की यात्रा बहुत लंबी है और इस यात्रा के बाद विधि शासन का जन्म होता है और विधि शासन को बनाए रखने वाली अदृश्य शक्ति एक प्रकार से अधिवक्ता भी है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page