भरत सोनी
अधिवक्ता संघ चुनाव , आज 9 फरवरी को मतदान होना है। अध्यक्ष पद समेत कुल 16 पदों के लिए 57 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। कल 10 फरवरी को मतगणना होगी। अध्यक्ष पद पर चार दावेदार मैदान में हैं। सभी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर वोट सहयोग की अपील कर रहे हैं। परिणाम बताएगा कि अपने प्रयासों में कौन कितना सफल होगा।
हम कितना भी कह कर, स्वयं को संतुष्ट कर लें कि अधिवक्ता संघ चुनाव संघ परिवार का चुनाव है, लेकिन हकीकत ठीक विपरीत है।
आम चुनावों की भांति इसमें भी जन बल, धन बल के साथ साम दाम दण्ड भेद का प्रयोग उपयोग करते हुए खास लोगों को देखा जा सकता है।
और यह संभव नहीं कि, यह हर व्यक्ति यह कर सके। लेकिन जो करेगा वह फिर जनहित कैसे करेगा।
यही कारण है कि राज्य के सबसे बड़े बार के सदस्यों को जब अधिवक्ता हित की बात आती है तो अपने पड़ोसी जिला बार का नाम लेने को मजबूर होना पड़ता है।
चुनाव अभी भी हो रहे हैं, पहले भी हुए लेकिन वकीलो की समस्या जस की तस।
अभी भी दूर तक संभावना नजर नहीं आती कि, इस बार कुछ अच्छा होगा।
चुनाव तो हो रहा है और आगे भी होते रहेगा।
लेकिन अधिवक्ता हित और उनकी समस्या का हल कैसे हो या होगा, यह यक्ष प्रश्न है ?
हम कितना भी कह कर, स्वयं को संतुष्ट कर लें कि अधिवक्ता संघ चुनाव संघ परिवार का चुनाव है, लेकिन हकीकत ठीक विपरीत है। आम चुनावों की भांति इसमें भी जन बल, धन बल के साथ साम दाम दण्ड भेद का प्रयोग उपयोग करते हुए खास लोगों को देखा जा सकता है। और यह संभव नहीं कि, यह हर व्यक्ति यह कर सके। लेकिन जो करेगा वह फिर जनहित कैसे करेगा।
राज्य के सबसे बड़े बार के सदस्यों को जब अधिवक्ता हित की बात आती है तो अपने पड़ोसी जिला बार का नाम लेने को मजबूर होना पड़ता है। चुनाव अभी भी हो रहे हैं, पहले भी हुए लेकिन वकीलो की समस्या जस की तस। चुनाव तो हो रहा है और आगे भी होते रहेगा। लेकिन अधिवक्ता हित और उनकी समस्या का हल कैसे हो या होगा, यह यक्ष प्रश्न है ?
अध्यक्ष पद के लिए 20000 रूपये जमानत राशि, वह भी वापसी योग्य नहीं, उसके बाद जिसका कोई भी हिसाब नहीं, वह चुनावी खर्च ? क्या आम अधिवक्ता साथी ये चुनाव लड़ सकता है, स्वाभाविक ही नहीं, और जो लड़ सकते हैं, हम निरंतर उनके प्रयासों और सफलता को देख रहे हैं।
बहरहाल, हम अधिवक्ता हित की बात करें, पार्किंग व्यवस्था, जो न्यायालय परिसर में आते ही , और शाम को वापसी तक सभी को साफ नजर आती है, यह अलग बात है कि कोई जिम्मेदार इसे देखना ना चाहे।
न्यायालयीन समय पर नक़ल के लिए लम्बी लाइन, और इसके बाद भी अगर प्रकरण की इंट्री नहीं मिली तो, कंप्यूटर रूम का दौरा। ये लाइन यहीं नहीं रुकती, कलेक्टर परिसर स्थित पोस्ट ऑफिस तक इसकी पहुंच बरकरार है, दर्जनों आम लोगों के बीच काला कोट लगाएं, ऑफिसर ऑफ द कोर्ट, अपनी बारी आने का इंतजार घंटो लाइन में खड़े होकर करता है। बार और बेंच की दुहाई देने वाले कभी बार मेंबरों की आपबीती सुन लें तो, लोकतांत्रिक व्यवस्था धन्य हो जाए। यह तो आम बात है, खास तो यह है कि, जिस व्यवसाय के लिए कम से कम 18 साल पढ़ाई की, हजारों रुपए फीस जमा किया, किसी वरिष्ठ के साथ अपने पिता की कमाई से लिए जूते घिसे, फिर किसी अपने खास पक्षकार का कॉल आया कि, वह कोर्ट आ रहा है, जमानत अर्जी दाखिल करनी है, लेकिन थाना से कोर्ट आते आते, आने वाला पक्षकार हाईजैक ? राजस्व का तो अपना वर्चस्व है, इसके लिए पूर्व कार्यकरिणी ने बड़े अधिकारियों को ज्ञापन दिया लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद, कई कार्यकारिणी आई और गई, वह ज्ञापन फाइलों में कहीं आराम कर रहा है। आवासीय योजना की बात की जाए तो, पत्रकारों, कर्मचारियों आदि के लिए आवास कॉलोनी बनाई जाती है, इस प्रयास के लिए अधिवक्ता गृह निर्माण सहकारी समिति बनाई गई, आवास योजना के तहत आवास का क्या हुआ, यह हम सब जानते हैं, वह समाचारों की सुर्खियों रही है। कितनी हकीकत, कितना फ़साना। किसी ने सच कहा है कि प्यार और युद्ध में सब जायज़ है, यह कहावत चरितार्थ होती देखी जा सकती है, इस चुनाव में। आख़िर युग परिवर्तन का मामला है। पूर्व कार्यकारिणी द्वारा अधिवक्ता कल्याण योजना बनाई गई, योजना में अधिवक्ता हित में सामूहिक बीमा, स्वास्थ्य व आकस्मिक सहायता की व्यवस्था बनाई गई, इसके लिए अधिकांश अधिवक्ता 25 रूपये का मेमो 100 रूपये में खरीद रहे हैं लेकिन कल्याण योजना का आय व्यय ? बीमा योजना ? यक्ष प्रश्न है ? आकस्मिक निधन पर योजना से जुड़े हुए अधिवक्ता परिवार को पूर्व में पचास हजार रुपए की जगह एक लाख रुपए की त्वरित सहयता प्रदान की जा रही है। यह योजना की सार्थकता को बनाए रखा गया है, लेकिन वर्ष 2013 के बाद अब तक सामूहिक बीमा योजना ठंडे बस्ते में रही। इस पर अधिवक्ता हित के लिए आगे और किया जा सकता है यह विचार किया जा सकता था लेकिन…..
फिर वही यक्ष प्रश्न ?
अधिवक्ता साथियों को न्यायालय परिसर में मूलभूत सुविधाओं के अलावा और भी कई सुविधाओं की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता।
अब हमें देखना है कि इस चुनाव में जो चेहरे हमारे सामने आ रहे हैं, उनमें कौन योग्य है जो आपको और आपकी समस्याओं को समझें और उसका समुचित हल निकालने का प्रयास कर सके। उन्हें आप कितना समर्थन करते हैं या झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ की के नुस्खे की बदौलत चुनाव जीता जा सकता है। फैसला आपका है, नहीं तो चुनाव हर दो साल में होना ही है।