2017 के सिंचाई घोटाले में ठेका देने की एवज में दो पूर्व मंत्री, उनके पीए और तीन IAS को करोड़ों रुपये की रिश्वत मामले में विजिलेंस ने जवाब दाखिल करते हुए किसी प्रकार की कोताही को नकारते हुए CBI जांच को गैर जरूरी बताया है। विजिलेंस ने कहा कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के बाद इन सभी को जांच में शामिल किया जा चुका है।
बठिंडा निवासी हरमीत सिंह एवं अन्य ने याचिका दायर कर हाईकोर्ट को बताया कि इस घोटाले के मुख्य आरोपी गुरिंदर सिंह भाप्पा ने 2017 में पुलिस को दिए बयान में दो पूर्व मंत्रियों व उनके पीए और तीन IAS अधिकारियों को टेंडर के बदले करोड़ों रुपये देने की बात कबूली थी। मुख्य आरोपी के इस बयान के बावजूद सरकार ने अब तक किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
याची ने बताया कि उसने गत वर्ष 30 जून को पंजाब के मुख्य सचिव सहित विजिलेंस विभाग को लीगल नोटिस भेज नामित किए गए सभी रसूखदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। साथ ही यह भी मांग की थी कि इस मामले में जांच CBI को सौंपी जाए क्योंकि मामला हाई प्रोफाइल लोगों से जुड़ा है।
हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए पंजाब सरकार को लीगल नोटिस पर तय कानून के तहत उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया था। याचिका के अनुसार राज्य सरकार जानबूझकर राज्य के दो पूर्व मंत्रियों और तीन वरिष्ठ IAS अधिकारियों की मदद करने के लिए मामले की जांच में देरी कर रही है।
पंजाब विजिलेंस ब्यूरो के SDP ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि इस मामले में विजिलेंस ब्यूरो आरोपियों के बैंक व संपत्ति के पूरे रिकॉर्ड की जांच कर रहा है। दो पूर्व मंत्रियों शरणजीत ढिल्लों व जेएस सेखों और तीन वरिष्ठ IAS अधिकारियों केबीएस सिद्धू, सर्वेश कौशल व केएस पन्नू के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू की है। विजिलेंस ब्यूरो ने कोर्ट को बताया कि केबीएस सिद्धू की याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है जिसमें अदालत ने विजिलेंस ब्यूरो की कार्रवाई पर रोक लगाई है।
सिंचाई घोटाला 2017 में सामने आया था और विजिलेंस विभाग ने एक ठेकेदार को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान उसने बयान में दो पूर्व मंत्रियों, तीन पूर्व IAS अफसरों और कुछ इंजीनियरों के नाम लिए थे। आरोप के अनुसार ठेकेदार गुरिंदर सिंह को 2007 से 2016 तक 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के काम अलॉट हुए थे। उसने इन अफसरों, पूर्व मंत्रियों को पैसा दिया। 2006 में उसकी कंपनी 4.75 करोड़ रुपये की जो मात्र दस वर्ष में 300 करोड़ रुपये की हो गई।