सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में एक महिला की कथित हत्या के मामले में तीन पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को मंगलवार (28 जनवरी, 2025) को रद्द कर दिया। जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने हाईकोर्ट के दिसंबर 2012 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका स्वीकार कर ली थी और हत्या के लिए तीन पुलिसकर्मियों-सुरेंद्र सिंह, सूरत सिंह और अशद सिंह नेगी को बरी करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था। महिला की नवंबर 2004 में पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई थी।
हाईकोर्ट ने एक अन्य पुलिसकर्मी जगदीश सिंह की ओर से दायर याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसने गोली चलाई थी और बाद में निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बेंच ने कहा कि जगदीश, जो हेड कांस्टेबल था, ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, लेकिन 16 जनवरी 2025 को उसकी याचिका का निपटारा कर दिया गया, क्योंकि उसकी मृत्यु हो चुकी है।
हाईकोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए तीन पुलिसकर्मियों की ओर से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश करने में नाकाम रहा कि वे जगदीश के साथ समान इरादा रखते थे।
बेंच ने कहा, ‘अब यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि IPC की धारा 34 (सामान्य इरादे) के तहत किसी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष को पहले से सांठ-गांठ की बात स्थापित करनी होगी।’ बेंच ने कहा कि निचली अदालत के निष्कर्ष को हाईकोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि तीनों आरोपी जगदीश के साथ एक ही वाहन में बैठे थे और यह उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा-34 के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त था।