महिलाओं के साथ रेप के मामलों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि चाहे महिला की सहमति से ही क्यों न बनाया गया हो, रेप के बराबर है। अगर ऐसी सहमति महिला ने डर या गलतफहमी में दी हो। हाई कोर्ट का यह फैसला राघव कुमार के मामले में आया, जिसने IPC की धारा 376 के तहत रेप के मामले में अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस अनीस कुमार गुप्ता ने राघव कुमार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दिसंबर 2018 में आगरा में उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र को चुनौती दी गई थी।

आरोपपत्र एक महिला की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत पर आधारित था, जिसने राघव कुमार पर उसे बेहोश करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने और बाद में शादी के बहाने उसका शोषण करने का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दोनों पक्ष सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उनके बीच लंबे समय से सहमति से शारीरिक संबंध बन रहे थे। उनके वकील ने दावा किया कि धारा 376 के तहत इसे कोई अपराध के तहत नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि यह रिश्ता लंबे समय तक सहमति से बना था।

हालांकि, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि यह रिश्ता धोखे और बल के माध्यम से शुरू किया गया था, जिससे महिला की किसी भी वास्तविक सहमति को अमान्य कर दिया गया। 10 सितंबर को दिए गए अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि आवेदक ने विपरीत पक्ष की महिला की इच्छा के विरुद्ध धोखाधड़ी, धमकी आदि के तत्व के साथ प्रारंभिक संबंध स्थापित किया था, इसलिए पहली नजर में IPC की धारा 376 के तहत अपराध बनता है।

हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि हालांकि बाद का रिश्ता सहमति से बना हुआ प्रतीत होता है, लेकिन यह शुरुआत में धमकी और धोखे से यह बनाया गया था। इस प्रकार कोर्ट ने राघव के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। इस बात पर जोर देते हुए कि दबाव या झूठे वादों के तहत दी गई सहमति को वैध नहीं माना जा सकता। यह फैसला न्यायिक रुख को दोहराता है कि जबरदस्ती या झूठे बहाने से प्राप्त सहमति आरोपी को रेप के आरोपों से मुक्त नहीं करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page