कई बार ऐसा देखा गया है कि कुछ ऐसे मामले होते हैं जिनमें किसी निर्दोष को झूठे आरोपों में फंसा दिया जाता है। ऐसे ही एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया है जो काबिलेगौर है। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को पॉक्सो एक्ट के मामले में एक शख्स को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने शख्स को रिहा करते हुए कहा कि इस मामले में सबूत की कमी और विरोधाभास है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रॉसिक्यूशन मामले में आरोप साबित करने में फेल हुआ।

गलत तरीके से दोषी ठहराया जाना बुरा

हाईकोर्ट ने कहा कि जिस तरह गलत तरीके से बरी किया जाना लोगों के भरोसे को हिला देता है, उसी तरह गलत तरीके से दोषी ठहराया जाना भी कहीं अधिक बुरा होता है। मामले की सुनवाई जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने की। जस्टिस अनूप कुमार ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन का मामला उन सभी सबूतों की कमी और विरोधाभास से घिरा हुआ है जो प्रॉसिक्यूशन की केस के बुनियाद पर शक पैदा करते हैं। प्रॉसिक्यूशन इस मामले में आरोप साबित करने में पूरी तरह फेल रहा, साथ उसने कई शक भी छोड़े हैं।

सुनाई 5 साल की सजा

कोर्ट ने POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 10 और आईपीसी की धारा 506 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपीलकर्ता को 5 साल की सजा और 4000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। इसके अलावा कोर्ट ने वादी को आदेश दिया है कि पीड़ित को मुआवजे के रूप में 20,000 रुपये दें। जानकारी दे दें कि 2016 में जैतपुर पुलिस स्टेशन में पॉक्सो और IPC की धाराओं में केस दर्ज किया गया था। मामले में हाईकोर्ट ने आगे कहा कि ये मामला रंजिश और वैवाहिक विवादों के कारण ट्यूशन या मनगढ़ंत कहानी पर बेस्ड है। साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि पाड़िता मे बिना किसी ठोस कारण के इंटरनल मेडिकल टेस्ट करवाने से भी इंकार कर दिया। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि पीड़िता ने अपने विवेक से अपीलकर्ता द्वारा किए गए कृत्यों के बारे में अपना बयान भी बदल लिया, जिससे मामला साफ हो गया है।

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