इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पति या पत्नी की आय की गणना गणितीय शब्दों में नहीं की जा सकती है। क्योंकि, वास्तविक आय रेकॉर्ड पर नहीं आ पाते हैं। दोनों ही पक्ष अपनी आय को छिपाने में रुचि रखते हैं। लिहाजा, अदालतें भरण पोषण की राशि तय करते समय पति या पत्नी की आय का अनुमान लगा सकती हैं। कोर्ट ने मौजूदा मामले में पति की मासिक आय का अनुमान 60 हजार रुपये मानते हुए पत्नी को प्रतिमाह 15 हजार और उसके दो बच्चों को छह-छह हजार रुपये मासिक भरण पोषण की राशि का भु्गतान करने का आदेश पारित किया। यह आदेश जस्टिस सुरेंद्र सिंह-प्रथम ने शैली मित्तल और दो अन्य की पुनर्विचार याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने मुजफ्फरनगर परिवार न्यायालय के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें परिवार न्यायालय ने याची यानी पत्नी को सात हजार रुपये और उसके दोनों बच्चों को दो हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाने का आदेश पारित किया था। कोर्ट ने कहा कि उसके द्वारा पारित आदेश के तहत भरण पोषण की राशि को प्रत्येक माह की सात तारीख को प्रदान किया जाए। कोर्ट ने कहा कि भरण पोषण की राशि को वाद दाखिल करने की तिथि से दिया जाएगा।

मामले में पत्नी ने मुजफ्फरनगर परिवार न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। पत्नी का कहना था कि परिवार न्यायालय ने भरण पोषण की राशि तय करते समय पति की आय का आंकलन सही नहीं किया। पति के पास आय के विभिन्न स्रोत हैं। जबकि, पति की ओर से पत्नी के दावे को खारिज किया गया। कहा गया कि वह अपने भाई के व्यावसायिक प्रतिष्ठान में सेल्समैन के रूप में काम कर रहा है। उसकी मासिक आय सात से आठ हजार रुपये प्रतिमाह है। इसके अलावा उसने दोनों बच्चों को फीस, ट्यूशन फीस सहित पढ़ाई के अन्य मदों में दो लाख, 81 हजार रुपये दिए हैं। पत्नी को भी उसने अंतरिम रखरखाव के लिए 24 हजार रुपये दिए हैं। लिहाजा, पत्नी का दावा खारिज किया जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page