सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपीलीय न्यायालय किसी मामले में केवल संभावना के आधार पर दोषमुक्ति के आदेश को नहीं पलट सकता है। शीर्ष न्यायालय में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयन की पीठ ने कहा कि अपीलीय न्यायालय में प्रस्तुत रिकार्ड से जब तक यह पता न चले कि दोषमुक्त करार दिया व्यक्ति दोषी हो सकता है, तब तक दोषमुक्ति के आदेश में हस्तक्षेप न किया जाए।

बताना होगा ठोस कारणः कोर्ट

पीठ ने कहा कि अपीलीय न्यायालय यदि दोषमुक्ति के आदेश को पलटता है और बरी हुए व्यक्ति को दोषी ठहराता है तो उसके लिए न्यायालय को साक्ष्य आधारित ठोस कारण बताना होगा। अगर व्यक्ति को दोषी ठहराने वाला साक्ष्य उपलब्ध नहीं है तो अपीलीय न्यायालय उसकी दोषमुक्ति के आदेश को बदल नहीं सकता है।

कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था हत्या के एक मामले में दी है, जिसमें सत्र न्यायालय ने आरोपित व्यक्ति को दोषमुक्त करार दिया था, बाद में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलट दिया। जस्टिस ओका ने अपने आदेश में लिखा है कि यह न्याय व्यवस्था का स्थापित नियम है कि दोषमुक्ति के किसी मामले में अपीलीय न्यायालय किसी साक्ष्य पर आधारित व्याख्या कर सकता है, न कि साक्ष्य के बगैर संभावना या आशंका के आधार पर पूर्व निर्णय को बदल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के हत्या के जिस मामले में यह व्यवस्था दी है उसमें पांच जुलाई, 1997 को सत्र न्यायालय ने आरोपित को दोषमुक्त करार दिया था। जबकि हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 के आदेश में दोषमुक्त व्यक्ति को दोषी करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page