इलाहाबाद हाईकोर्ट में  एक मामले में सुनवाई के दौरान जब यह पाया गया कि, एक “मृत अधिवक्ता” के नाम पर कोर्ट में मुक़दमे दाखिल किये जा रहे है।   तो हाई कोर्ट ने फर्जी याचिका दायर करने वालों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने का आदेश दे दिया। 

 

न्यायमूर्ति समित गोपाल ने कहा कि,  जिस वकील के नाम पर याचिका दायर की गई है, उसकी 2014 में मृत्यु हो गई है। यह आदेश सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर जमानत याचिका में पारित किया गया है। रजिस्ट्रार जनरल को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया है, और निर्देशित किया गया है कि, आगे की जांच गंभीरता से की जानी चाहिए ताकि सच्चाई का पता लगाया जा सके और फर्जी याचिका दायर करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके।

न्यायमूर्ति समित गोपाल ने कहा, “मौजूदा जमानत याचिका काल्पनिक व्यक्ति (व्यक्तियों) द्वारा अदालत में मामला दायर करने का एक उदाहरण है।”

इससे पहले 26 जुलाई को जब मामले की सुनवाई हुई तो अधिवक्ता अभिषेक कुमार पहुंचे, बावजूद इसके कि वह इस मामले में वकील नहीं थे।कुमार ने तब अदालत को सूचित किया कि,  जमानत याचिका अधिवक्ता आदित्य नारायण सिंह और राजेश चंद्र तिवारी द्वारा दायर की गई थी, जो कि “किसी की शरारत है क्योंकि आदित्य नारायण सिंह की मृत्यु लगभग दो साल पहले हुई थी और एडवोकेट रोल नंबर किसी और का है न कि श्री राजेश चंद्र तिवारी का।”  


कोर्ट ने कहा –

“अदालत इस प्रकार उक्त मुद्दे पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती है और प्रथम दृष्टया यह राय आने के बाद कि, दो आवेदकों कमलेश यादव और राजेश चौहान की ओर से वर्तमान जमानत आवेदन दायर किया गया है, को जाने नहीं दिया जा सकता है। गुपचुप तरीके से है। वर्तमान मामला एक दिखावटी मुकदमा है, “


प्रकरण की 25 अक्टूबर को दोबारा सुनवाई होगी, जब कोर्ट आगे के आदेश जारी करने के लिए रजिस्ट्रार जनरल और अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता की अनुपालन रिपोर्ट का मूल्यांकन करेगा।

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