सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड एग्जाम को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 5वीं, 8वीं, 9वीं और 11वीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा कराने के हित में फैसला सुनाया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और फैसला सुनाया गया कि इन कक्षाओं के लिए बोर्ड परीक्षा का आयोजन छात्रों के फ्यूचर के साथ खिलवाड़ करना होगा। इससे छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों पर भी प्रेशर पड़ेगा। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि किसी भी स्कूल द्वारा घोषित बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों को फिलहाल आउट नहीं किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि राज्य छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने और उन्हें और उनके माता-पिता, शिक्षकों और स्कूल प्रबंधन को कठिनाई में डालने पर तुला हुआ है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसी परीक्षाओं के परिणामों का उपयोग किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा और माता-पिता को भी इसकी जानकारी नहीं दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट में यह बोर्ड परीक्षा ना करवाने को लेकर अदालत रजिस्टर्ड अनएडेड प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन ने याचिका दायर की थी। फैसले में अदालत ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश प्रथम दृष्टया आरटीई अधिनियम के अनुरूप नहीं है। याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 22 मार्च के आदेश को चुनौती दी है, जिसने राज्य सरकार को कक्षा 5,8, 9 और 11 के लिए बोर्ड परीक्षाएं आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी।
इन कारणों की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बोर्ड परीक्षा ना कराने का फैसला
हाईकोर्ट के प्रारंभिक फैसले को चुनौती दिए जाने के तुरंत बाद 12 मार्च को जारी पिछले स्थगन आदेश के बाद, यह दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक बोर्ड परीक्षाओं के खिलाफ हस्तक्षेप किया है। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए अपने फैसले को उचित ठहराया था कि कर्नाटक बोर्ड परीक्षाएं पारंपरिक अर्थों में ‘बोर्ड परीक्षा’ माने जाने वाले मानदंडों को पूरा नहीं करती है, क्योंकि उनमें परिणामों को पब्लिक घोषित नहीं किया जा रहा है और छात्रों की कॉपियों का मूल्यांकन भी बाहर के शिक्षक नहीं करने वाले हैं। इसके अलावा इन कक्षाओं के बोर्ड एग्जाम में ग्रेडिंग जैसी कुछ प्रमुख विशेषताएं नहीं है।