समयपूर्व रिहाई के आवेदनों को रद्द करने के खिलाफ बहुत सी याचिकाओं का निपटारा करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि किसी का निवेदन 6 माह से अधिक समय से लंबित है तो कैदी अंतरिम जमानत का हकदार है।

हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ की सभी डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी को जेलों का निरीक्षण कर समयपूर्व रिहाई के लिए योग्य कैदियों की पहचान करने और उनकी रिहाई के लिए परिवार को कानूनी मदद उपलब्ध करवाने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध रहित समाज की अपेक्षा मूर्खता, सजा पूरी कर चुके कैदियों का पुनर्वास कल्याणकारी राज्य का दायित्व बनता है।

हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार समान स्थिति वाले कैदियों में भेदभाव कर समय पूर्व रिहाई से इन्कार नहीं कर सकती और इस तरह का दृष्टिकोण असमानता से भरा है। मनमाने ढंग से दोषियों को समाज के लिए खतरा बताते हुए समय से पहले रिहाई के उनके मामलों को टालने की प्रथा को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है।

समय से पहले रिहाई के लिए राज्य द्वारा स्थापित नीति सभी दोषियों पर समान रूप से लागू होती है। यदि अपराध के लिए कैदी दंडित हो चुका है तो समय से पहले रिहाई से इन्कार करना उसके लिए दोहरी सजा देने के बराबर है। कैदी यदि अच्छा व्यवहार बनाए रखता है और कई पैरोल और फरलो का लाभ उठाने के बावजूद बिना किसी अप्रिय घटना आत्मसमर्पण कर देता है तो उसे कैसे अपराध की गंभीरता के आधार पर समय पूर्व रिहाई से इन्कार किया जा सकता है।

हरियाणा की जेलों में बंद हत्या के दोषियों की कई याचिकाएं हाईकोर्ट में विचाराधीन थी, जिनमें सरकार ने उनकी रिहाई से समाज में शांति और सौहार्द को खतरा बताते हुए समयपूर्व रिहाई से इन्कार कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने बताया था कि समान स्थिति वाले दोषियों को समय से पहले रिहाई की रियायत दी गई है।

हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध रहित समाज की आशा करना मूर्खतापूर्ण होगा, हालांकि अपराधियों के पुनर्वास की दिशा में प्रयास करना और उन्हें समाज के एक कार्यात्मक सदस्य के रूप में मौका देना राज्य के कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है। सजा का लक्ष्य निवारण है और उम्रकैद की सजा काट रहे किसी अपराधी के लिए आजादी सबसे कीमती संपत्ति होती है।

यह नहीं माना जाना चाहिए कि रिहा होने पर सभी दोषी अपने अभियोजकों से बदला लेंगे। जेल में दोषी के आचरण, मन की स्थिति, अपराध की गंभीरता, सामाजिक पृष्ठभूमि और पैरोल के दौरान व्यवहार पर विचार करने के बाद ही समयपूर्व रिहाई पर निर्णय लेना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page