सुप्रीम कोर्ट ने दहेज में 100 सोने के सिक्के की मांग को ठुकराने पर विवाह समारोह में सहयोग करने से मना करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। यह वैवाहिक संबंध केवल तीन दिनों तक चला था। इस मामले में वर्ष 2006 में हुए सगाई समारोह के बाद दूल्हे और उसके परिवार ने जोर देकर कहा था कि वे विवाह समारोह में तभी सहयोग करेंगे जब उन्हें 100 सोने के सिक्के दिए जाएंगे।

अपीलकर्ता के परिवार ने दुल्हन के भाई को विवाह के दिन रीति-रिवाजों को निभाने की अनुमति नहीं दी। हालांकि, उन्होंने रिसेप्शन में भाग लिया, पर अपीलकर्ता के पिता दूल्हे को रिसेप्शन के मंच से अपने साथ ले गए। विवाह रिसेप्शन समाप्त होने से पहले अपीलकर्ता रिसेप्शन के मंच से बाहर चला गया और बगल में खड़ा हो गया। दुल्हन के रिश्तेदारों के उससे विनती करने के बावजूद अपीलकर्ता ने मंच पर आने से इन्कार कर दिया। उस समय अपीलकर्ता ने रिश्तेदारों से कहा कि 100 सिक्के पेश किए जाने के बाद ही वे बोल सकते हैं। फोटोग्राफर ने यह भी गवाही दी कि अपीलकर्ता के परिवार ने शादी की तस्वीरें लेने में भी सहयोग नहीं किया

24 जनवरी को दिए फैसले में जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, ‘हम संतुष्ट हैं कि आईपीसी की धारा 498-ए के तत्व पूरी तरह से सिद्ध होते हैं। अपीलकर्ता ने पत्नी को सोने के सिक्कों की अवैध मांग को पूरा करने के लिए उसे और उसकी मां को मजबूर करने के उद्देश्य से परेशान किया। जब पत्नी और उसके रिश्तेदारों ने ऐसी मांग पूरी नहीं की तो उसे परेशान करना जारी रखा। आईपीसी की धारा 498-ए और डीपी अधिनियम की धारा 4 के तत्व स्पष्ट रूप से सिद्ध होते हैं।’

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