दिल्ली हाई कोर्ट ने एक परिवारिक विवाद का निपटारा करते हुए दूसरे धर्म में सादी को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने गुरुवार (24 जनवरी) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी हिंदू महिला का मुस्लिम शख्स से विवाह करने से उसका धर्म खुद-ब-खुद इस्लाम में नहीं बदला जाता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी से धर्म परिवर्तन का दावा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि इसका ठोस प्रमाण न हो।
जस्टिस जसमीत सिंह एक शख्स की पहली पत्नी की बड़ी बेटी द्वारा उनकी दूसरी पत्नी के दो बेटों के खिलाफ संपत्ति बंटवारा विवाद की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने यह टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता महिला को पिता की संपत्ति में से 1/5वां हिस्सा देने का आदेश दिया।
बता दें पुष्पलता नामक महिला ने 2007 में अपने सौतेले भाइयों के खिलाफ संपत्ति विवाद में मुकदमा दायर किया था। पुष्पलता अपने पिता की पहली पत्नी की सबसे बड़ी बेटी है। उसके पिता ने दूसरी शादी की थी और दूसरी पत्नी से हुए दोनों बेटे पिता की संयुक्त संपत्ति बेच रहे थे। इस पर पुष्पलता ने आपत्ति जताई थी और उसने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत 1/5वां हिस्सा की मांग की थी।
इसी दौरान दिसंबर 2008 में मुकदमा लंबित रहने के दौरान उनके पिता की मौत हो गई। पुष्पलता ने अपनी अर्जी में यह तर्क दिया था कि उन्हें और उनकी बहनों के पास मुकदमे की संपत्तियों में से हर को 1/5 हिस्से का अधिकार है। मुकदमा इसलिए दायर किया गया था क्योंकि प्रतिवादी बेटे वादी बेटियों की सहमति के बिना हिन्दू संयुक्त परिवार की संपत्तियों को बेचने और निपटाने की कोशिश कर रहे थे।
इस मामले में पिता ने इस आधार पर मुकदमे का विरोध किया था कि उसकी सबसे बड़ी बेटी जो याचिकाकर्ता और वादी है, अब हिंदू नहीं रह गई है, क्योंकि उसकी यूनाइटेड किंगडम में पाकिस्तानी मूल के एक मुस्लिम से शादी कर ली है। अदालत ने आंशिक तौर पर इस मुकदमे को स्वीकार करते हुए कहा कि वादी अब हिन्दू नहीं है, इसे साबित करने का जिम्मा प्रतिवादियों पर है, लेकिन प्रतिवादी भाई यह साबित कर पाने में विफल रहे कि उनकी बड़ी बहन ने इस्लाम धर्म अपना लिया है और अब वह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की लाभार्थी नहीं रहीं।
इस पर कोर्ट ने कहा कि महिला ने हलफनामे के माध्यम से अपने सबूतों में स्पष्ट रूप से कहा है कि मुस्लिम शख्स के साथ विवाह करने के बाद भी वह अपने धर्म यानी हिंदू धर्म का पालन करती है। कोर्ट ने इसी आधार पर प्रतिवादियों का तर्क खारिज कर दिया और महिला को उसका हिस्सा देने का आदेश दिया।
जस्टिस जसमीत सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मेरे विचार से किसी मुस्लिम से विवाह कर लेने मात्र से हिंदू धर्म से इस्लाम में स्वतः धर्मांतरण नहीं हो जाता। वर्तमान मामले में प्रतिवादियों द्वारा किए गए मात्र कथन के अलावा प्रतिवादियों द्वारा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है जिससे कि यह साबित हो सके कि वादी ने इस्लाम में धर्मांतरण कर लिया है।”
आदेश में यह भी कहा गया कि ऐसे सबूतों के अभाव में केवल विवाह के आधार पर धर्म परिवर्तन का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा चूंकि महिला ने अपना धर्म नहीं बदला है, इसलिए वह HUF संपत्तियों में अपने हिस्से पर दावा ठोकने की हकदार है। संपत्तियों के अलावा बेटियां HUF के नाम पर PPF खाते में जमा राशि में भी हर में से 1/4 हिस्सा पाने की हकदार हैं।