सरकारी जमीन का इस्तेमाल मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के लिए करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता और यूपी के पूर्व मंत्री आजम खान को कड़ी फटकार लगाई है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा उनके ट्रस्ट से जमीन वापस लिए जाने के फैसले को सही ठहराया है। राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, साफ पता चलता है कि अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए जमीन का आवंटन किया गया था।

सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाल और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि शहरी विकास और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहते हुए आजम खान ने इस जमीन का आवंटन किया था। उन्होंने सरकारी जमीन को अपने ही परिवार के ट्रस्ट के लिए पट्टे पर दे दिया। इस ट्रस्ट में उनकी लाइफटाइम मेंबरशिप है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले सरकारी संस्था के लिए इस जीन को लीज पर दिया जाना था। लेकिन बाद में इसे एक प्राइवेट ट्रस्ट को दे दिया गया। इस तरह का हेरफेर आखिर कैसे किया जा सकता है? वहीं मंत्री रहते हुए इसमें आजम खान की भूमिका भी नैतिकता का उल्लंघन करती है।

आजम खान की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि लीज कैंसल करने से पहले ट्रस्ट को कोई नोटिस भी नहीं दिया गया। कार्रवाई से पहले ट्रस्ट को अपना पक्ष रखने के लिए कम से कम नोटिस दिया जाना चाहिए थे। वहीं कोर्ट ने कहा कि नोटिस जारी करना इस मामले में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।

सिब्बल ने कहा कि यह ट्रस्ट पिछड़ों और वंचितों के बच्चों को शिक्षा की व्यवस्था करता है। इसमें पढ़ाई के लिए केवल 20 रुपये लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह ट्रस्ट किसी निजी लाभ केलिए नहीं है। सरकार के फैसले के बाद 300 छात्रों को स्कूल छोड़ना पड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि राज्य का शिक्षा विभाग उन बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करेगा।

बता दें कि आजमखान इन दिनों सीतापुर की जेल में हैं। 2022 हेट स्पीच मामले में उन्हें सजा सुनाई गई थी और इसके बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता भी चली गई था। 18 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी ट्रस्ट की अपील को खारिज कर दिया ता। जिस जमीन पर ट्रेनिंग और रिसर्च इंस्टिट्यूट बनाया जाना था उसे 2015 में एक लीज अग्रीमेंट के तहत ट्रस्ट को दे दिया गया था। एसआईटी की जांच के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 2023 में लीज कैंसल कर दी थी।

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