दिल्ली हाई कोर्ट ने एक सरकारी महिला अधिकारी की प्रताड़ना से जुड़ी अवमानना शिकायत पर दिल्ली सरकार के सर्विसेज डिपार्टमेंट के डिप्टी सेक्रेटरी (सर्विसेज) को कारण बताओ नोटिस जारी किया और कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। कोर्ट ने ब्यूरोक्रेट से पूछा कि उन्हें हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना के लिए सजा क्यों न सुनाई जाए।

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने डिप्टी सेक्रेटरी (सर्विसेज) भैरव दत्त को नोटिस जारी करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने मामले को 28 अक्टूबर की सुबह 11:30 बजे सुनवाई के लिए लगा दिया। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने यह आदेश टीना राणा की याचिका पर 9 अक्टूबर को जारी किया। याचिककर्ता ने इस अदालत के 16 नवंबर 2022 को पारित आदेश में निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए प्रतिवादी अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था।

क्या है मामला?
याचिकाकर्ता 1 सितंबर 2016 से शिक्षा निदेशालय में जूनियर असिस्टेंट (ग्रेड-IV, दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन सबॉर्डिनेट सर्विसेज) के तौर पर काम कर रही हैं। उन्होंने प्रतिवादियों, खासतौर पर तहसीलदार के हाथों गंभीर रूप से परेशान किए जाने का आरोप लगाया, जिनका याचिकाकर्ता के परिवारवालों के साथ कुछ निजी विवाद था। आरोप के मुताबिक, तहसीलदार ने एक गुमनाम पत्र/शिकायत के आधार पर ऐसी रिपोर्ट तैयार की, जिससे याचिकाकर्ता के ओबीसी-एनसीएल सर्टिफिकेट की वैधता पर सवाल उठ गए। हाई कोर्ट ने 16 नवंबर 2022 के आदेश के तहत पाया कि तहसीलदार के कहने पर याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई कानून के मुताबिक नहीं थी। मौजूदा अवमानना याचिका में याचिकाकर्ता की परेशानी इस बात को लेकर थी कि उसे 1 जनवरी 2023 से प्रमोशन देने के बावजूद उसके लिए सैलरी सितंबर 2023 से देना शुरू किया गया।

हाई कोर्ट ने मानी बात- परेशान करते थे अफसर
जस्टिस शर्मा ने जजमेंट में कहा कि 16 नवंबर 2022 का जजमेंट ओबीसी-एनसीएल सर्टिफिकेट की वैधता पर संदेह की बात नहीं कहता है। 25 जनवरी 2023 को रेवेन्यू डिपार्टमेंट, नरेला के एसडीएम को भेजा गया शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर का लेटर इस अदालत के निर्देशों की पूरी तरह से अवहेलना और कानूनी रूप से बने रहने लायक नहीं है। हाई कोर्ट ने माना कि दोषी तहसीलदार के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने की बजाए, दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को अलग-थलग कर दिया और परेशान करते रहे।

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