सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कुछ राज्यों की जेल नियमावली के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को खारिज कर दिया और जाति आधारित भेदभाव, काम के बंटवारे और कैदियों को उनकी जाति के अनुसार अलग वार्डों में रखने के चलन की निंदा की। भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव को रोकने के लिए कई निर्देश भी जारी किए।

कोर्ट ने कहा कि राज्य नियमावली के अनुसार, जेलों में वंचित वर्ग के कैदियों के साथ भेदभाव के लिए जाति को आधार नहीं बनाया जा सकता है। शीर्ष कोर्ट ने विभिन्न राज्यों की जेल नियमावलियों में जाति आधारित भेदभाव के चलन की निंदा की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी जातियों के कैदियों के साथ मानवीय तरीके से और समान व्यवहार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि निश्चित वर्ग के कैदियों को जेलों में काम के उचित बंटवारे का अधिकार है। किसी विशेष जाति के कैदियों का सफाईकर्मियों के रूप में चयन करना पूरी तरह से समानता के अधिकार के खिलाफ है।

सर्वोच्च कोर्ट ने इस वर्ष जनवरी में केंद्र तथा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से याचिका पर जवाब मांगा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील पर गौर किया कि इन राज्यों की जेल नियमावलियां जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करती हैं और कैदियों को रखने का स्थान उनकी जाति के आधार पर तय होता है। याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया और कहा गया कि वे आदतन अपराधी और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधी के बीच अंतर करते हैं और कहते हैं कि जो लोग आदतन डाकू, सेंध लगाने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें अलग अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाए और अन्य दोषियों से अलग रखा जाए।

याचिका में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में कहा गया है कि जेल में काम जाति के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों द्वारा किया जाएगा और सफाई का काम विशेष जातियों के लोगों द्वारा किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में सहायता करने को कहा था।

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की इन दलीलों पर गौर किया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार राज्य जेल मैनुअल में किए गए संशोधनों के बावजूद, राज्यों की जेलों में जातिगत भेदभाव किया जा रहा है।

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