सुप्रीम कोर्ट ने गरीब मजदूरों को 22 साल तक मुकदमों में उलझा कर रखने से खिन्न होकर ना सिर्फ राजस्थान सरकार के वकील को फटकार लगाई है बल्कि राज्य सरकार पर शुक्रवार (16 फरवरी) को 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने राज्य द्वारा दायर याचिका को तुच्छ मुकदमा करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने राजस्थान सरकार पर गरीब वादियों को परेशान करने और श्रम न्यायालय के फैसले का लाभ पाने के लिए उन्हें बार-बार मुकदमा दायर करने के लिए मजबूर करने का गुनहगार पाया और इस कृत्य के लिए कड़ी फटकार लगाई। खंडपीठ ने राज्य द्वारा दायर याचिका को भी खारिज कर दिया।

राज्य सरकार के आचरण के प्रति असंतोष व्यक्त करते हुए अदालत ने पूछा कि श्रम न्यायालय का लाभ पाने के लिए गरीब वादियों को क्यों बार-बार मुकदमा दायर करने के लिए मजबूर किया गया और 22 साल तक उन्हें उस फैसले का लाभ देने के बजाय नाहक परेशान किया गया।

बता दें कि अस्थाई तौर पर काम कर रहे प्रतिवादी श्रमिकों को वर्ष 2001 में ही श्रम न्यायालय ने बहाल कर दिया था। बावजूद इसके उन्हें इसका लाभ नहीं दिया गया बल्कि उसके खिलाफ राज्य सरकार ने मामले को पहले हाई कोर्ट की सिंगल बेंच फिर डबल बेंच में दायर किया। श्रम न्यायालय द्वारा पारित फैसले को ही हाई कोर्ट की एकल पीठ और खंडपीठ ने बरकरार रखा। वहां से भी राज्य सरकार को निराशा हाथ लगी। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

समाचार पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजस्थान सरकार पिछले 22 सालों से वैसे गरीब अंशकालिक मजदूरों को नाहक परेशान कर रही है, जिसके पक्ष में वर्ष 2001 में श्रम न्यायालय फैसला सुना चुकी है। यह पूरी तरह से एक तुच्छ याचिका है। तदनुसार, इसे 10,00,000/- रुपये (केवल दस लाख रुपये) के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है। इस राशि का भुगतान चार सप्ताह के अंदर करना होगा और छह सप्ताह के अंदर इस कोर्ट के समक्ष भुगतान का सबूत दाखिल करना होगा।”

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