व्यक्तिगत मुद्दों पर जनहित याचिका दायर करने के कारण गुजरात हाईकोर्ट ने एक याचिकाकर्ता पर सात लाख का जुर्माना ठोक दिया। हालांकि, पहले यह जुर्माना 10 लाख रुपये था, जिसे बाद में कोर्ट ने कम करके सात लाख कर दिया। याचिकाकर्ता ने साल 2017 में एक निजी कंपनी को हुए जमीन आवंटन के खिलाफ याचिका दायर की थी।

जानकारी के अनुसार, याचिकाकर्ता धर्मेंद्र सिंह जड़ेजा ने सात साल पहले (2017 में) हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने एक निजी कंपनी को खनिज समृद्ध भूमि के आवंटन के खिलाफ स्थगन की मांग की थी। इसी याचिका पर कोर्ट ने जड़ेजा पर 10 लाख का जुर्माना लगा दिया, जिसे बाद में कम करके सात लाख कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह जुर्माना जनहित याचिका में व्यक्तिगत मुद्दों को उठाने के कारण लगाया गया है।

हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध माई की खंडपीठ ने सात साल तक मुकदमा चलने के कारण  जड़ेजा पर हर साल एक लाख रुपये के हिसाब से सात लाख का जुर्माना लगाया। सीजे अग्रवाल ने कहा कि आप जनहित याचिका के तहत व्यक्तिगत मुद्दे उठा रहे हैं। इससे न सिर्फ अदालत का समय बर्बाद होता है, बल्कि आप अदात के कर्मचारियों की उर्जा का भी उपयोग कर रहे हैं। कोर्ट का समय और कर्मचारियों का समय महत्वपूर्ण और जरूरी मामलों के लिए होता है। जनहित याचिका दायर करने की कुछ जिम्मेदारी और जवाबदेही है। इसे अपने निजी मुद्दों के लिए इस्तेमाल न करें।

बता दें, याचिका में कहा गया था कि एक निजी कंपनी रोहित सुरफेक्शन प्राइवेट लिमिटेड को द्वारका जिले में एक खनिज समृद्ध भूमि आवंटित की गई है। आवंटन में नीतियों और कानूनों को दरकिनार कर दिया गया है। याचिका में राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आवंटित भूमि पर अब एक उद्योग स्थापित हो चुका है। अब सरकार को कब्जा वापस दिलाना संभव नहीं है। यह अकामदमिक प्रकृति का मामला है।

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