हरियाणा के सोनीपत में एक कलयुगी मां सामने आई। एक महिला ने करीब 14 साल पहले अपने मासूम दो बच्चों की बेरहमी से जान ले ली थी। उसके बाद महिला का पति अदालत पहुंच गया था।
साल 2003 में दंपत्ति की शादी हुई थी। उनका एक बेटा और एक बेटी थे। घर में अक्सर कलेश रहने लगा। एक दिन गुस्से में आकर साल 2010 में महिला ने अपने दोनों बच्चों की हत्या कर दी। इसके बाद जुलाई 2011 में अदालत ने उसे हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
इसके बाद पति ने तलाक के लिए सोनीपत की पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन जुलाई 2013 में अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी। इस फैसले के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। बताया गया कि पति और पत्नी के बीच शिक्षा का अंतर उनके संबंधों में विवाद का कारण था। पत्नी 12वीं तक पढ़ी थी, जबकि पति केवल 8वीं तक शिक्षित था। यह भी बताया गया कि पत्नी इस रिश्ते को खत्म करना चाहती थी, लेकिन बच्चे उसके रास्ते की बाधा थे, इसलिए उसने उनकी हत्या कर दी।
दूसरी ओर, पत्नी ने अदालत में यह दावा किया कि पति उसके साथ क्रूरता करता था और शराब का आदी था। उसने अपने बच्चों की हत्या करने के आरोपों से इनकार किया और कहा कि उसके खिलाफ यह झूठा मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, जुलाई 2011 में अदालत ने उसे हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हालांकि, अब लंबाई लड़ाई के बाद पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शख्स को तलाक की मंजूरी दे दी। यह फैसला जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस हर्ष बुंगर की खंडपीठ ने सुनाया। अदालत ने माना कि पत्नी द्वारा अपने ही बच्चों की हत्या किए जाने की घटना पति के मन में मानसिक पीड़ा, यातना और भय उत्पन्न करने वाली थी, जिससे यह प्रतीत होता है कि उसके साथ रहना सुरक्षित नहीं था। अदालत ने इसे पति के प्रति क्रूरता करार दिया और यह भी माना कि पत्नी की नौ साल की लंबी कैद ने पति को वैवाहिक संबंधों के अधिकार से वंचित कर दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसके अतिरिक्त, पति को समाज में अपमान और तिरस्कार भी झेलना पड़ा होगा। यह क्रूरता तब तक जारी रहेगी जब तक इस रिश्ते को खत्म नहीं किया जाता। इसलिए, न्याय के हित में विवाह को तलाक की डिक्री के माध्यम से भंग किया जाना आवश्यक है, ताकि अपीलकर्ता को उसके दुख और पीड़ा से मुक्ति मिल सके और वह अपनी नई जिंदगी शुरू कर सके।